अपनी मेहनत और जुनून से सरकारी स्कूल को निखारने वाले रजिंदर सिंह को राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया है. रजिंदर सिंह ने न सिर्फ स्कूल की पूरानी इमारत को संवारा, बल्कि स्कूल में बच्चों की संख्या और पढ़ाई की गुणवत्ता में भी अनोखा योगदान दिया है. उनके इसी योगदान के चलते उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार दिया गया है. आज हम आपको पंजाब के रहने वाले शिक्षक रजिंदर सिंह की कहानी बताने जा रहे हैं.
बदली पूरे स्कूल की तस्वीर
पंजाब के भटिंडा ज़िले के कोठे इन्दर सिंह बाला गांव में एक टूटी हुई इमारत के दीवारों को अनुदान नहीं मिला, तो रजिंदर सिंह ने अपने हाथों से स्कूल को सजाया और सवारा. रजिंदर सिंह ने टूटी हुई बिल्डिंग की पूरी तस्वीर ही बदल डाली और धीरे-धीरे स्कूल में बच्चों की संख्या 34 से बढ़कर 230 हो गई.
स्कूल की स्थिति को सुधारने और बच्चों की संख्या को बढ़ाने के संघर्ष के बारे में NDTV से बात करते हुए रजिंदर सिंह ने कहा कि " 2015 में जब मैंने स्कूल ज्वाइन किया तो हाथी के पैर जितना छोटा स्कूल था और बच्चे भी बस 34 थे और वो भी लगातार कम हो रहे थे. मैंने स्कूल को अच्छा बनाने के लिए दिन रात एक कर दिया".
" उन्होंने कहा कि दिन में 2 बजे तक पढ़ाने के बाद मैं स्कूल को सजाने लग जाता था. मैं अपने बच्चों को अलग-अलग गांवों के प्राइवेट स्कूल में ले जाता था और वह के बच्चों से कम्पटीशन करवाता था. इस दौरान उनके पेरेंट्स भी होते थे. ऐसा करते-करते एनरोलमेंट बढ़ गई.
प्राइवेट स्कूलों को दी टक्कर
रजिंदर सिंह को जब पैसों का अभाव हुआ तो वह स्कूल को सुन्दर बनाने के लिए खुद ही कारपेंटर, प्लम्बर, इलेक्ट्रीशियन, राज मिस्त्री बन गए. उन्होंने कहा कि "मेरी मेहनत ने इस स्कूल को आज ऐसा बना दिया हैं कि अब ये प्राइवेट स्कूलों को बराबर की टक्कर दे रहा हैं. "
रजिंदर सिंह जैसे और कई शिक्षकों की इस देश को जरूरत हैं. ताकि बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिल सके.
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