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This Article is From Jul 30, 2015

135वीं जयंती पर विशेष : रंगमंच की जान है प्रेमचंद की हिंदुस्तानी भाषा

135वीं जयंती पर विशेष : रंगमंच की जान है प्रेमचंद की हिंदुस्तानी भाषा
प्रेमचंद का स्कैच (साभार- असरार अहमद)
नई दिल्ली: मुंशी प्रेमचंद उस जमाने में हुए जब हिन्दी भाषा अपने विकास के प्रारंभिक चरण में ही थी। हिन्दी में बड़े ही सहज रूप से उर्दू के शब्द शामिल हुए। उस भाषा का असर देखिए कि आज मुंबई की 'आइडियल ड्रामा एंड इंटरटेनमेंट एकेडमी' (आइडिया) मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का नाट्य रूपांतरण और प्रदर्शन इसलिए भी करती है, क्योंकि इससे न सिर्फ नए कलाकारों की हिन्दी की समझ बेहतर होती है बल्कि उनके उच्चारण भी सुधर जाते हैं।

एकेडमी के संचालक रंगकर्मी मुजीब खान ने बताया कि प्रेमचंद की कहानियों में हिन्दी के साथ उर्दू के शब्दों का काफी उपयोग किया गया है। इन कहानियों का नाट्य रूपांतरण प्रेमचंद की भाषा को न छेड़ते हुए किया गया है। नए कलाकारों के उच्चारण और संवाद में सुधार के लिए यह भाषा सर्वाधिक उपयुक्त है। ('लिव इन' पर एक सदी पहले ही लिख चुके हैं प्रेमचंद)

मुजीब खान ने बताया कि कहानियों के नाट्य रूपांतरण में जहां उसकी भाषा को लेकर कोई समझौता नहीं किया गया, वहीं उनके मूल स्वभाव को भी नहीं बदला गया। 'आइडिया' में कहानियां अपने मूल स्वरूप में ही मंच पर आती हैं। कहानी का जो 'मूड' है वह मंच पर भी उसी स्वरूप में है।

प्रेमचंद की कहानियों में नाटकीय तत्वों को लेकर सवाल करने पर मुजीब खान ने बताया कि खुद प्रेमचंद ने लिखा है कि 'वह मैं  किसी कहानी के बारे में सोचता हूं तो उसे चार लाइन में अंग्रेजी में लिखता हूं और फिर उस पर ड्रामा के बारे में सोचते हूं। जब लगता है कि कहानी में ड्रामा है, तो फिर उसे लिख डालता हूं।' 

खान ने बताया कि मुंशी जी की 'कफन', 'बड़े भाई साहब', 'बड़े घर की बेटी', 'रसिक संपादक', 'बोनी', 'जिहाद' और 'ईदगाह' ऐसी कहानियां हैं जिनमें जोरदार ड्रामा है। इन नाटकों के प्रदर्शन में खासा मजा आता है।

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