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This Article is From Apr 18, 2022

मध्य प्रदेश के निमाड़ के सांप्रदायिक दंगों में पुलिस-प्रशासन की कार्यशैली पर उठे सवाल

खरगोन में रामनवमी को हिंसा (Khargone Ram Navami Violence) के दिन 10 तारीख को एक शख्स की हत्या हुई, लेकिन परिजनों को 7 दिनों बाद खबर दी गई, आठवें दिन शव मिला. वहीं सेंधवा में महीने भर से जेल में बंद तीन आरोपियों को दंगे का आरोपी बनाया गया.

मध्य प्रदेश के निमाड़ के सांप्रदायिक दंगों में पुलिस-प्रशासन की कार्यशैली पर उठे सवाल
Communal Violence : खरगोन इलाके में रामनवमी के दिन सांप्रदायिक दंगे हुए
भोपाल:

मध्य प्रदेश के निमाड़ में सांप्रदायिक दंगों को लेकर पुलिस-प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल पहले से उठ रह थे लेकिन अब उसके सबूत सामने आने लगे हैं. खरगोन में रामनवमी को हिंसा (Khargone Ram Navami Violence) के दिन 10 तारीख को एक शख्स की हत्या हुई, लेकिन परिजनों को 7 दिनों बाद खबर दी गई, आठवें दिन शव मिला. वहीं सेंधवा में महीने भर से जेल में बंद तीन आरोपियों को दंगे का आरोपी बनाया गया. एक का घर ढहाने के बाद अब खरगोन में भी पुलिस ने जिस शख्स को आरोपी बनाया है, वो उस दिन अस्पताल में भर्ती था वहीं एक अन्य कर्नाटक में था. 30 साल के इब्रिस खान को मौत के 8वें दिन कब्र नसीब हुई. 10 अप्रैल को ही हत्या हो गई, 7 दिन से परिजन उन्हें ढूंढते रहे और 7वें दिन पता लगा औऱ 8वें दिन शव मिला.

इब्रिस की लाश आठ दिनों बाद परिवार को मिली

इब्रिस नगरपालिका कर्मचारी थे, परिवार में पीछे पत्नी और दुधमुंहा बच्चा है. परिजन पुलिस-प्रशासन पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं. उनके भाई इखलाक खान ने आरोप लगाया कि पुलिस प्रशासन उसको सबके सामने ले गया, उन्होंने भी उसको मारा हमको 8 दिन तक बताया नहीं. हमने गुमशुदा रिपोर्ट डाली फिर भी आठ दिन तक बताया नहीं. जब एक पुलिसकर्मी पूछने आया तो मैंने बयान दिया. सिर्फ नाम पता नहीं बताया उसने 5 मिनट में डेड बॉडी बता दी. एनडीटीवी के पास एफआईआर की कॉपी है, जो बताती है कि पुलिस को शव 10 अप्रैल की रात 1 बजे ही मिल गया था, चश्मदीदों ने बता भी दिया कि 7-8 लोगों ने उसकी हत्या की है, शव का पोस्टमॉर्टम भी हो गया, फिर भी एफआईआर 14 की रात 11.54 मिनट पर लिखी गई. 12 घंटे पहले परिजनों की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखी गई, उसके बाद उन्हें हत्या की जानकारी दी गई, शव को भी खरगोन नहीं इंदौर में परिवार को सौंपा गया.

इस बारे में गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्र ने कहा,  8वें दिन शव सौंपा गया है औऱ आपकी जानकारी में 10 को शव मिला. 11 को पोस्टमार्टम हुआ. रिपोर्ट के आधार पर 302 का प्रकरण दर्ज हुआ पर शिनाख्त नहीं हुई. गुमशुदगी की रिपोर्ट नहीं थी, जब रिपोर्ट डाली गई तो परिवार वालों से शिनाख्त कराई, जब शिनाख्त कर दी तो बॉडी सौंप दी. एफआईआर में लिखा था, इसके बावजूद उसकी पुलिस ने शिनाख्त की कोशिश क्यों नहीं की, गुमशुदगी की रिपोर्ट नहीं थी आई तो शिनाख्त कराई गई. गौरतलब है कि पहले दिन से पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठे हैं. बड़वानी के सेंधवा में जेल में बंद आरोपियों को दंगे का आरोपी बनाने का मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि खरगोन में भी दो ऐसे लोगों को दंगे का आरोपी बनाने का मामला सामने आया है, जिसमें से एक कथित तौर पर जिला सरकारी अस्पताल के ऑर्थोपेडिक ट्रॉमा वार्ड में भर्ती था, जबकि दूसरे उसके परिजनों के मुताबिक शहर से बाहर दूसरे राज्य में था. फरीद के परिजनों के मुताबिक उसे 8 को चोट लगी वो 9-11 तक जिला अस्पताल में भर्ती थी, उसका नाम 11 और 12 अप्रैल को दर्ज दंगों के दो मामलों में दर्ज है, जबकि 12 अप्रैल को दर्ज प्राथमिकी में आजम सह आरोपी है जो उस दिन कथित तौर पर कर्नाटक में था.

खरगोन के संजय नगर इलाके में 10 अप्रैल को कथित तौर पर दंगा करने और दूसरों की संपत्ति में आग लगाने के मामले में आईपीसी की कई धाराओं में दोनों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. फरीद की भाभी अंजुम बी का कहना है कि 8 अप्रैल को घर की सफाई के दौरान गिरने की वजह से उसे चोट आई थी. उनको हमने भर्ती किया 9 तारीख की शाम में 10 को भी अस्पताल में थे. फिर 11 को अस्पताल में छुट्टी हुई. हमको घर छोड़े उस दिन से वो लापता हैं, उनका फोन भी बंद है. 2015 की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान भी हमारे परिजनों का नाम एफआईआर में नहीं था, बावजूद इसके उनको नाम डाला गया. बाद में हमारे आवेदनों के बाद मामले से नाम हटा दिए गए.

आज़म की पत्नी फरीदा, ने कहा ये सब झूठ है, वो 8 अप्रैल को कर्नाटक के लिए बेकरी उत्पादों के साथ खरगोन से निकले थे। 9 अप्रैल को उनका फोन आया था कि उन्हें पाइल्स की शिकायत हुई उन्होंने कर्नाटक में एक डॉक्टर को दिखाया उसके बाद 13 को धुले के लिये निकले वहां से 14 को इंदौर गये उन्होंने फिर बताया कि उनका नाम झूठी रिपोर्ट लिखाई गई है. हम सब परेशान हैं चाहते हैं कि झूठी रिपोर्ट से उनका नाम काटा जाए. पहली नजर में गलती समझ में आने पर भी सरकार का रुख अड़ियल ही नजर आ रहा है.

गृह मंत्री से जब पूछा गया, सर सेंधवा में एफआईआर हुई, कर्नाटक में था क्या समुदाय विशेष का टारगेट कर रहे हैं? इस पर उन्होंने कहा,  आप कह सकते हैं, जो दंगाई हैं उन पर कार्रवाई हो रही है, प्रशासन शिकायतकर्ता के बयान पर कार्रवाई कर रहा है अपनी तरफ से नाम नहीं लिखे हैं. खरगोन और बड़वानी में भड़के दंगों में ज्यादातर कार्रवाई एक समुदाय के खिलाफ हुई है. 

खरगोन में 55 से ज्यादा एफआईआर दर्ज हैं, जिसमें लगभग 42 मुस्लिमों के खिलाफ, 13 हिन्दुओं के खिलाफ हुई है. अब तक 148 आरोपी गिरफ्तार हुए हैं, जिसमें 142 मुस्लिम हैं. 30 अस्थायी निर्माण, 16 दुकानें और 4 घरों का हिस्सा ढहाया गया, जिसमें लगभग सभी मुस्लमानों के हैं.

मालवा-निमाड़ संघ का भी गढ़ है तो सिमी के सफदर नागौरी का भी पिछले 2 साल में यहां 15 से अधिक छोटे बड़े दंगे हुए हैं. ये वो इलाका है, जहां विधानसभा की 230 में 66 सीटें आती हैं. 2013 में इसमें से 57 सीटें बीजेपी के पास थीं, कांग्रेस के पास नौ. लेकिन 2018 में कांग्रेस ने 37 सीटें जीत लीं, बीजेपी को मिली मात्र 27 सीटें. 

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