
- जस्टिस यशवंत वर्मा को महाभियोग के जरिए हटाने की प्रक्रिया पहले लोकसभा में शुरू की जाएगी.
- सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा में विपक्ष की तरफ से पेश महाभियोग के नोटिस को रद्द किया जाएगा.
- राज्यसभा में इसी नोटिस को तत्कालीन चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने स्वीकार कर लिया था, जिस पर विवाद हुआ.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पहले लोकसभा में ही शुरू होगी. सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया है कि राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव के जिस नोटिस को तत्कालीन चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने स्वीकार किया था, उसे रद्द किया जाएगा.
एनडीटीवी को पता चला है कि लोकसभा में सरकार खुद महाभियोग प्रस्ताव पेश करेगी. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए एक कमिटी गठित करेंगे. पुख्ता सबूत मिलने पर उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की जा सकती है.
सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा में विपक्ष ने महाभियोग प्रस्ताव का जो नोटिस दिया गया था और जिसे राज्यसभा के चेयरमैन होने के नाते जगदीप धनखड़ ने स्वीकार कर लिया था, उसे रद्द किया जाएगा क्योंकि औपचारिक रूप से उसे कभी सदन के पटल पर पेश ही नहीं किया गया था.
इससे पहले एनडीटीवी को सूत्रों ने बताया था कि बीजेपी इस मसले को जुडिशरी में भ्रष्टाचार पर सरकार की सख्ती की तरह पेश करना चाहती थी. पार्टी इस साल बिहार और अगले साल पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इसे मिसाल की तरह दिखाना चाहती थी.
सत्तारूढ़ बीजेपी ने 21 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र से पहले अपना महाभियोग प्रस्ताव तैयार भी कर लिया था. पार्टी ने सभी दलों की सहमति सुनिश्चित करने के लिए विपक्षी दलों से भी संपर्क साधा था. बहुत से विपक्षी सांसदों ने भी सरकार के प्रस्ताव पर दस्तखत कर दिए थे. लेकिन पार्टी के इस अहम प्लान पर धनखड़ ने एक तरह से पानी फेर दिया था.
धनखड़ ने विपक्ष की तरफ से राज्यसभा में पेश महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार कर लिया था. सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने इसे विभिन्न दलों के साथ बनी आम सहमति के खिलाफ माना और यही बात धनखड़ को शायद चुभ गई. इसके बाद धनखड़ ने सेहत का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया.
याद दिला दें कि जस्टिस वर्मा जब दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे, तब 15 मार्च को उनके दिल्ली स्थित आवास पर बड़ी संख्या में जले हुए नोट मिले थे. इसके बाद उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल ने उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की. जस्टिस वर्मा ने किसी तरह के कदाचार में लिप्त होने से इनकार किया है.
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