मॉनसून का मौसम भारत की खेती के लिए बहुत ही अहम माना जाता है और हर साल देशभर के लोग बारिशों के सीजन के आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं. भारत में मॉनसून सबसे पहले केरल में पंहुचता है और उसके 3-4 दिन बार उत्तर पूर्व के हिस्सों में पहुंचते हुए आगे बढ़ता है. हालांकि, 7 साल बाद ऐसी असामान्य घटना हो रही है कि अनुमान लगाया जा रहा है कि केल और उत्तर पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में मॉनसून गुरुवार तक यानी 31 मई को पहुंच जाएगा.
2017 में केरल और उत्तर पूर्वी भारत में साथ में आया था मॉनसून
आमतौर पर केरल में 1 जून को और उसके कुछ दिन बाद उत्तर पूर्वी भारत में मॉनसून आता है. पिछले साल ऐसी असामान्य घटना 30 मई 2017 को देखी गई थी. इस वजह से यह वाकई लोगों के लिए किसी सरप्राइज से कम नहीं है. आईएमडी ने कहा, "इसी अवधि के दौरान दक्षिण अरब सागर के कुछ और हिस्सों, मालदीव, कोमोरिन, लक्षद्वीप के शेष हिस्सों, दक्षिण-पश्चिम और मध्य बंगाल की खाड़ी, उत्तर-पूर्व बंगाल की खाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां अनुकूल होती जा रही हैं."
कृषि के दृष्य से भारत के लिए बेहद अहम है मॉनसून
भारत के कृषि परिदृश्य के लिए मॉनसून महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुल खेती योग्य क्षेत्र का 52 प्रतिशत हिस्सा इस पर निर्भर करता है. यह देश भर में बिजली उत्पादन के अलावा पेयजल के लिए महत्वपूर्ण जलाशयों को फिर से भरने के लिए भी महत्वपूर्ण है. जून और जुलाई को कृषि के लिए सबसे महत्वपूर्ण मॉनसून महीने माना जाता है क्योंकि खरीफ फसल की अधिकांश बुवाई इसी अवधि में होती है.
अल नीनो और ला नीना की बनी हुई है स्थिति
वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्तमान में अल नीनो की स्थिति बनी हुई है और अगस्त-सितंबर तक ला नीना की स्थिति बन सकती है. अल नीनो - मध्य प्रशांत महासागर में सतही जल का समय-समय पर गर्म होना - भारत में कमजोर मॉनसूनी हवाओं और शुष्क परिस्थितियों से जुड़ा है. ला नीना - अल नीनो का विरोधी - मॉनसून के मौसम में भरपूर बारिश की ओर ले जाता है.
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