लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या मुद्दे पर अब मोदी सरकार भी कोर्ट पहुंच गई है. केंद्र सरकार की ओर से दाखिल की गई अर्जी में मांग की गई है कि 67 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण किया था जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था. जमीन का विवाद सिर्फ 0.313 एक़ड़ का है बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थिति बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहती है जमीन का बाकी हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट इसकी इज़ाजत दे.सरकारी सूत्रों का कहना है कि नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित ०.313 एकड़ भूमि के साथ ही 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने के लिए केंद्र सरकार ड्यूटी बाउंड है. इसमें 40 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास की है. हम चाहते हैं कि इसे उन्हें वापस कर दी जाए साथ ही वापस करते यह देखा जा सकता है कि विवादित भूमि तक पहुंच का रास्ता बना रहे. उसके अलावा जमीन वापस कर दी जाए.
गौरतलब है कि अयोध्या मामले की नई संवैधानिक 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही है. न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर इसमें शामिल हैं. ये दोनों राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के लिये पूर्व में गठित तीन सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे. न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली उस तीन सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे, जिसने 27 सितंबर 2018 को 2:1 के बहुमत से शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई एक टिप्पणी को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास पुनर्विचार के लिये भेजने से मना कर दिया था.
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शीर्ष अदालत ने 1994 के अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. यह मामला अयोध्या भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के दौरान उठा था. न्यायमूर्ति नजीर ने बहुमत के फैसले से अलग राय जताई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर हैं. चार दीवानी मुकदमों पर सुनाए गए अपने फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2.77 एकड़ जमीन को तीन पक्षों--सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था. अयोध्या मामले पर सुनवाई के लिये इस साल आठ जनवरी को गठित पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर शामिल नहीं थे. पीठ का पुनर्गठन इसलिये किया गया क्योंकि मूल पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति यू यू ललित ने 10 जनवरी को मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. उन्होंने मामले की सुनवाई में आगे हिस्सा लेने से मना कर दिया था क्योंकि वह 1997 में एक संबंधित मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की तरफ से एक वकील के तौर पर पेश हुए थे. नयी पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं.
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