अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मोदी सरकार आज विपक्ष के द्वारा लाए गये अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही है. संसद के मॉनसून सत्र के तीसरे दिन लोकसभा में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हो रही है. यह बीते 15 सालों में ऐसा पहली बार है, जब संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो. इससे पहले साल 2003 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस नीत विपक्ष ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था और उस पर वोटिंग भी हुई थी. अगर आज विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव विफल होता है, तो मोदी सरकार भी अटल सरकार की तरह ही सरकार बचाने में कामयाब हो जाएगी. हालांकि, मोदी सरकार के पास जितनी संख्या है, उससे सरकार के ऊपर किसी तरह का खतरा नहीं है.
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दरअसल, साल 2003 में अटल सरकार के खिलाफ भी कांग्रेस नीत विपक्ष ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसे लोकसभा में बहस के लिए स्वीकार कर लिया गया था. मगर अपने पक्ष में कांग्रेस वोट जुटाने में नाकमयाब रही थी और अटल सरकार विश्वास जीतने में सफल हो गई थी. हालांकि, अभी भी समीकरण ठीक उसी तरह दिख रहे हैं, जिसमें ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार वोटों की गिनती में विपक्ष को हरा देगी.
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वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से ऐसे वक्त में लाया गया था, जब लोकसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम का समय बचा था. आज जब मोदी सरकार केंद्र में है तो कमोबेश ऐसी ही स्थिति है. यहां भी 2019 लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम ही समय है. बता दें कि इस बार तेलगू देशम पार्टी की ओर से लाए गये मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को कांग्रेस का समर्थन मिला, जिसे लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन स्वीकार कर लिया और बहस और वोटिंग के लिए आज का दिन तय किया.
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साल 2003 में अगस्त महीने में अटल सरकार के खिलाफ लाए गये अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष को हार का मुंह देखना पड़ा था. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान एनडीए के पक्ष में 312 वोट मिले थे और वहीं कांग्रेस नीत विपक्ष अपने पक्ष में 186 वोट जुटाने में कामयाब रही थी. हालांकि, दिवंगत नेता जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके और फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने वोटिंग से अपने आपको अलग रखा था, वहीं, मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी ने सरकार के पक्ष में वोट किया था.
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उस वक्त अटल बिहार वाजपेयी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का मौका विपक्ष को उनके एक फैसले से मिला था. दरअसल, अटल सरकार ने जॉर्ज फर्नांडिस को दोबारा रक्षा मंत्री बनाया था. खास बात यह भी है कि अटल सरकार का यह किसी गैरकांग्रेसी सरकार का यह पहला कार्यकाल था, जो पूरा होने वाला था. यानी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली ऐसी गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी जिसने अपने कार्यकाल को पूरा किया था. उसके बाद अब यह पीएम मोदी के नेतृत्व में दूसरी सरकार है, जो अपने पांच साल के कार्यकाल को पूर्ण करती दिख रही है.
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मगर 2004 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हार मिली थी और कांग्रेस ने एक बार फिर से सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली. इस तरह से 2004 में यूपीए की सरकार सत्ता में आई. मगर केंद्र की सत्ता में आने से अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मध्य प्रदेश और राजस्थान में बुरा असर हुआ और वहां की सरकार हाथ से चली गई.
VIDEO: मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस आज
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दरअसल, साल 2003 में अटल सरकार के खिलाफ भी कांग्रेस नीत विपक्ष ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसे लोकसभा में बहस के लिए स्वीकार कर लिया गया था. मगर अपने पक्ष में कांग्रेस वोट जुटाने में नाकमयाब रही थी और अटल सरकार विश्वास जीतने में सफल हो गई थी. हालांकि, अभी भी समीकरण ठीक उसी तरह दिख रहे हैं, जिसमें ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार वोटों की गिनती में विपक्ष को हरा देगी.
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साल 2003 में अगस्त महीने में अटल सरकार के खिलाफ लाए गये अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष को हार का मुंह देखना पड़ा था. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान एनडीए के पक्ष में 312 वोट मिले थे और वहीं कांग्रेस नीत विपक्ष अपने पक्ष में 186 वोट जुटाने में कामयाब रही थी. हालांकि, दिवंगत नेता जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके और फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने वोटिंग से अपने आपको अलग रखा था, वहीं, मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी ने सरकार के पक्ष में वोट किया था.
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मगर 2004 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हार मिली थी और कांग्रेस ने एक बार फिर से सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली. इस तरह से 2004 में यूपीए की सरकार सत्ता में आई. मगर केंद्र की सत्ता में आने से अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मध्य प्रदेश और राजस्थान में बुरा असर हुआ और वहां की सरकार हाथ से चली गई.
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