सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईटी एक्ट की धारा 66ए को रद्द किए जाने के बाद सरकार के आगे ये चुनती है कि इसे अब संविधान के दायरे में कैसे लाया जाए।
आपको बता दें कि कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि संविधान की धारा 19(1)(a) और 19(2) का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है लिहाजा आईटी एक्ट की धारा 66ए असंवैधानिक है।
गृह मंत्रालय ने एक कमिटी का गठन किया है जो इस बात का अध्यन करेगी कि सेक्शन 66ए को संविधान के अनुकूल कैसे बनाया जाए। दरअसल सरकार चिंतित है कि किस तरह से उस पहेली से जूझा जाए जो सुप्रीम कोर्ट के हाल के आदेश के बाद आ गई है।
इस कमीटी को स्पेशल सेक्रेटरी(इंटरनल सिक्योरिटी) अशोक प्रसाद हेड करेंगे और इसमें आईबी, पुलिस और एनआईए से अफसर भी शामिल होंगे। देखना ये है कि किस तरह से इसका गलत इस्तेमाल रोका जाए। अभी के कानून के अनुसार अगर कोई इंटरनेट के ज़रिये भड़काने का काम करता है या फिर ऑनलाइन टेरर आउटफिट्स का समर्थन करता है तो युएपीए के तहत मामला दर्ज़ किया जाता है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि सरकार चाहती है कि कानून और भी हों इसलिए ये कमिटी बनाई गई है।'
हाल ही में आईएसआईएस के समर्थन में कई नौजवान ट्वीट करते हुए सुरक्षा एजेंसियों के राडार पर आये थे। इंटरनेट के जरिये असम या फिर नागालैंड में लोगों को भड़काने के कई पोस्ट भी ऑनलाइन देखे गए थे।
ये कमिटी एक महीने में अपनी रिपोर्ट फाइनल करेगी और फिर इस रिपोर्ट को आईटी मंत्रालय से भी साझा किया जाएगा। दरअसल सुरक्षा एजेंसियां कुछ शब्दों के हटाने को लेकर चिंतित हैं। 'grossly offensive' या फिर 'menacing' जैसे शब्दों की जगह कौन से शब्द इस्तेमाल किये जा सकते हैं इस पर भी विचार होगा।
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