पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार रहे संजय बारू ने अप्रैल 2014 में एक किताब लिखी, जिसका नाम था - 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'. ये किताब मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल को लेकर लिखी गई थी. इस बुक ने सियासी भूचाल ला दिया. इसके बाद मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने और उनके कार्यकाल को लेकर कई तरह की बातें कही जाने लगी. संजय बारू मई 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार नियुक्त हुए. वो इस पद पर अगस्त 2008 तक रहे.
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दरअसल 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इसके बाद गठबंधन का नेतृत्व करते हुए कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. उस वक्त सोनिया गांधी कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा थीं और पार्टी के सभी लोग उन्हें प्रधानमंत्री देखना चाहते थे. काफी मनाने के बाद भी वो तैयार नहीं हुईं और फिर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर आगे किया गया. सोनिया गांधी ने खुद उनका नाम आगे किया था और सभी से समर्थन करने की अपील की थी.
इसी घटना का जिक्र करते हुए संजय बारू ने उन्हें एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर बता दिया. हालांकि कांग्रेस ने इसके विरोध में कई महत्वपूर्ण तथ्य पेश किए. कांग्रेस का कहना था कि मनमोहन सिंह को इसलिए प्रधानमंत्री चुना गया, क्योंकि उस समय बाजार और सुधार (रिफॉर्म) समर्थकों में उनका चेहरा सबसे ज्यादा स्वीकार्य था.
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प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने भी स्वीकार किया था कि 2008 तक उन्होंने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत काम किया. हालांकि जब उनकी सरकार को सपा का समर्थन मिल गया, तो धीरे-धीरे उन्होंने लेफ्ट और 10 जनपथ रोड से दूरी बना ली. 2009 में जीत के बाद मनमोहन सिंह ने सरकार के एजेंडे पर मजबूती से काम करना शुरू किया. गांधी परिवार ने बहुत कोशिश की, लेकिन 2011-12 के बाद उन्हें रोकने में नाकाम रहा. 2012 में हुआ कैबिनट फेरबदल इसका उदाहरण है.
मनमोहन सिंह को 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' बताने वाली संजय बारू की किताब आई, तो पीएमओ ने भी नाराजगी जाहिर की थी. पीएम मनमोहन सिंह के कार्यालय ने एक बयान जारी कर इसे पद का दुरुपयोग और व्यावसायिक लाभ कमाने की मंशा करार दिया था.
संजय बारू ने अपनी किताब में कहा कि मैंने कभी मनमोहन सिंह का मीडिया सलाहकार रहने के दौरान किताब लिखने की योजना नहीं बनाई थी. इस नाते मैंने कोई डायरी भी नहीं रखी थी.हालांकि अपने कार्यकाल के दौरान कुछ प्रमुख घटनाओं के नोट्स जरूर बनाए थे.
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बारू ने कहा, "2012 के अंत तक मैंने तय नहीं किया था कि मैं कोई किताब लिखूंगा. मेरा मानना था कि ये स्वाभाविक है कि एक नेता या तो प्रशंसा का पात्र हो या फिर घृणा का, लेकिन उपहास का पात्र नहीं बनना चाहिए. जब मैंने 2008 में पीएमओ छोड़ा, तब मीडिया उन्हें सिंह इज किंग कहती थी. चार साल बाद एक न्यूज मैग्जीन ने सिंग इज सिन'किंग' कहा. ये तेजी से गिरती छवि का प्रमाण था."
संजय बारू लिखते हैं- उन्होंने(मनमोहन) कई गलतियां की, इस किताब में उसका उल्लेख करने में झिझक नहीं है. पहला कार्यकाल ठीक रहा, लेकिन दूसरा कार्यकाल वित्तीय घोटालों और बुरी खबरों से भरा रहा. उन्होंने राजनीति पर से नियंत्रण भी खो दिया. कार्यालय(पीएमओ) असरहीन हो गया. उनसे पत्रकारों, राजनयिकों, उद्यमियों, नेताओं और मित्रों ने कई सवाल किए. जैसे, क्या यूपीए टू की तुलना में यूपीए वन ज्यादा सफल रहा ? पीएम की छवि क्यों खराब हुई है.? पीएम मनमोहन और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कैसे रिश्ते हैं? आपने पीएमओ क्यों छोड़ा?
संजय बारू ने लिखा कि उन्होंने पीएमओ कुछ निजी कारणों से छोड़ा. हालांकि किताब में इस आखिरी सवाल को छोड़कर बाकी सभी सवालों का जवाब दिया गया है. संजय बारू के मुताबिक इसमें कोई संदेह नहीं कि 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत के मनमोहन सिंह आर्किटेक्ट थे. मगर उसका क्रेडिट उन्हें नहीं मिला.
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