गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने जमानत के बावजूद लगभग 3 साल तक अवैध तरीके से जेल में रखे गए युवक को 1 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है. लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक, आवेदक 27 वर्ष का है. एक हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था. वह करीब 5 साल तक की सजा काट चुका था. इस बीच अदालत ने आवेदक की याचिका पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 389 के प्रावधान के तहत उसकी सजा को निलंबित कर दिया. अदालत ने 29 सितंबर 2020 को उसे रेगुलर बेल दे दी. हालांकि, कैदी चंदनजी ताकोर को नियमित जमानत हासिल करने के बावजूद तीन साल तक जेल में रहना पड़ा, क्योंकि जेल अधिकारी जरूरी कार्रवाई करने में नाकाम रहे.
जेल अधिकारियों ने हाईकोर्ट को बताया कि वे 2020 में रजिस्ट्री द्वारा उन्हें ईमेल (Bail Email) किए गए जमानत आदेश में अटैच फाइल को खोलने में असमर्थ थे. इसलिए उस व्यक्ति को रिहा नहीं किया जा सका.
अदालत ने अपने आदेश कहा, "यह कोई ऐसा मामला नहीं है कि ईमेल जेल अधिकारियों को नहीं मिला था. यह जेल अधिकारियों का मामला है कि कोविड -19 महामारी के मद्देनजर आवश्यक कार्रवाई नहीं की जा सकी. हालांकि, उन्हें ईमेल मिला, लेकिन वे अटैच फाइल खोलने में असमर्थ थे.”
अदालत ने राज्य से जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) से देरी से रिहाई के ऐसे ही मामलों की पहचान करने का आग्रह किया जाए. कोर्ट ने कहा, "हम राज्य को उसे एक लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दे रहे हैं. इसका भुगतान 14 दिनों की अवधि के भीतर किया जाएगा. रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश को जिला सत्र न्यायालय, मेहसाणा को भी सूचित करे.''
कोर्ट ने निर्देश दिया, “इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए हम सभी डीएलएसए को विचाराधीन कैदियों/दोषियों का डेटा एकत्र करने का निर्देश देना उचित समझते हैं, जिनके पक्ष में जमानत पर रिहा करने के आदेश पारित किए गए हैं लेकिन वे रिहा नहीं किए गए हैं."
आवेदक को मुआवजे के संभावित भुगतान सहित इन निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने मामले को 18 अक्टूबर 2023 को फिर से सुनवाई के लिए निर्धारित किया है.
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