महाकुंभ 2025 के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच रहे हैं, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान कर वे मोक्ष की कामना कर रहे हैं. लेकिन संगम से कुछ ही दूरी पर स्थित सरस्वती कूप नामक रहस्यमयी स्थल भी भक्तों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यहां मां सरस्वती के जल के प्रत्यक्ष दर्शन किए जा सकते हैं.
प्रयागराज किले के भीतर स्थित सरस्वती कूप को सरस्वती नदी का गुप्त स्रोत माना जाता है. यह कूप सीधे भूमिगत जलधारा के माध्यम से संगम से जुड़ा हुआ है. 2016 में वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया, जिसमें इस कुएं के जल में रंग डालकर यह सिद्ध किया गया कि इसका जल संगम त्रिवेणी में प्रवाहित होता है.
सरस्वती कूप के प्रमुख पुजारी सुबेदार मेजर राम नारायण पांडे बताते हैं कि यह कूप कुएं के आकार का है, इसलिए इसे सरस्वती कूप कहा जाता है. मान्यता है कि सरस्वती नदी का उद्गम बद्रीनाथ के आगे माणा गांव से होता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब महर्षि वेदव्यास 18 पुराणों की रचना कर रहे थे, तो मां सरस्वती की तेज जलधारा से उत्पन्न ध्वनि के कारण भगवान गणेश को सुनने में कठिनाई हुई. तब मां सरस्वती को पाताल लोक की ओर प्रवाहित होने का आदेश दिया गया. हालांकि, जब वे प्रयागराज पहुंचीं, तो भगवान विष्णु के अवतार वेणी माधव ने उन्हें धरातल पर लौटने और संगम में विलीन होने के लिए राज़ी किया. यही कारण है कि सरस्वती कूप का जल अदृश्य सरस्वती नदी का प्रमाण माना जाता है.
महाकुंभ में संगम स्नान के लिए आए भक्तों के लिए यह एक अनोखा अवसर है कि वे सरस्वती कूप के दर्शन कर मां सरस्वती के अदृश्य प्रवाह को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करें. संगम की यात्रा को और पवित्र बनाने के लिए श्रद्धालु यहां आकर इस जल का आचमन कर पुण्य अर्जित कर सकते हैं.
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