प्रतीकात्मक तस्वीर
मुंबई:
महाराष्ट्र सरकार ने ऐसे शिक्षण संस्थानों को स्कूलों के तौर पर मान्यता देने से मना कर दिया है, जो विज्ञान, गणित तथा सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों की शिक्षा नहीं देते हैं।
राज्य के सामाजिक न्याय राज्यमंत्री दिलीप कांबले ने गुरुवार को घोषणा की, 'जो स्कूल राज्य सरकार द्वारा मान्य पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते हैं, उन्हें स्कूल के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी... इसलिए मदरसों तथा सिर्फ धार्मिक अध्ययन पर आधारित ऐसे ही अन्य संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को विद्यार्थियों में शुमार नहीं किया जाएगा..."
बीजेपी-नीत देवेंद्र फडणवीस सरकार ने इससे पहले राज्य में चल रहे मदरसों से कहा था कि यदि वे सरकारी अनुदान पाते रहना चाहते हैं तो वे अपने पाठ्यक्रम में औपचारिक स्कूली विषयों को भी शामिल करें।
उस समय अल्पसंख्यक कल्याणमंत्री एकनाथ खड़से ने कहा था, 'हम चाहते हैं कि अल्पसंख्यक जीवन के हर क्षेत्र में आगे आएं... इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि जब वे विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं, तो साथ ही अन्य विषयों की भी शिक्षा दें... अतः हमने मदरसों द्वारा अन्य विषयों को पढ़ाया जाना भी अनिवार्य करने का फैसला किया है...'
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में यूपी, एमपी या पश्चिम बंगाल के तर्ज़ पर मदरसा बोर्ड नहीं है। महाराष्ट्र के किसी सरकार ने मदरसों को स्कूल/पाठशाला नहीं माना। अब तक की सभी सरकारें मदरसों को प्रचलित शिक्षा पद्धति के बाहर ही माना है। महाराष्ट्र में साल 2013 में की तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मदरसा आधुनिकीकरण योजना शुरू की थी, तब भी उस सरकार ने भी मदरसों को स्कूल नहीं माना।
राज्य में फिलहाल करीब 1900 मदरसे हैं, जिनमें लगभग दो लाख बच्चे पढ़ रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार चार जून को पूरे राज्य में उन बच्चों का हेड काउंट कराएगी जो बच्चे प्रचलित स्कूल व्यवस्था में नहीं पढ़ते।
सरकार ऐसे बच्चों के साथ उन तमाम बच्चों की भी गिनती करेगी जिन्हें कोई शिक्षा नहीं मिल पाती। ऐसे बच्चों का हेड काउंट कर सरकार उनकी संख्या जानना चाहती है, ताकि उन बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा में लाने के लिए आने वाले खर्च का अंदाजा सरकार को लग सके।
सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, इस पहल केवल धार्मिक शिक्षा पाकर सार्वजनिक जीवन की प्रतियोगिता में पिछड़ रहे बच्चों को मुख्यधारा में लाने की है।
राज्य के सामाजिक न्याय राज्यमंत्री दिलीप कांबले ने गुरुवार को घोषणा की, 'जो स्कूल राज्य सरकार द्वारा मान्य पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते हैं, उन्हें स्कूल के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी... इसलिए मदरसों तथा सिर्फ धार्मिक अध्ययन पर आधारित ऐसे ही अन्य संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को विद्यार्थियों में शुमार नहीं किया जाएगा..."
बीजेपी-नीत देवेंद्र फडणवीस सरकार ने इससे पहले राज्य में चल रहे मदरसों से कहा था कि यदि वे सरकारी अनुदान पाते रहना चाहते हैं तो वे अपने पाठ्यक्रम में औपचारिक स्कूली विषयों को भी शामिल करें।
उस समय अल्पसंख्यक कल्याणमंत्री एकनाथ खड़से ने कहा था, 'हम चाहते हैं कि अल्पसंख्यक जीवन के हर क्षेत्र में आगे आएं... इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि जब वे विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं, तो साथ ही अन्य विषयों की भी शिक्षा दें... अतः हमने मदरसों द्वारा अन्य विषयों को पढ़ाया जाना भी अनिवार्य करने का फैसला किया है...'
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में यूपी, एमपी या पश्चिम बंगाल के तर्ज़ पर मदरसा बोर्ड नहीं है। महाराष्ट्र के किसी सरकार ने मदरसों को स्कूल/पाठशाला नहीं माना। अब तक की सभी सरकारें मदरसों को प्रचलित शिक्षा पद्धति के बाहर ही माना है। महाराष्ट्र में साल 2013 में की तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मदरसा आधुनिकीकरण योजना शुरू की थी, तब भी उस सरकार ने भी मदरसों को स्कूल नहीं माना।
राज्य में फिलहाल करीब 1900 मदरसे हैं, जिनमें लगभग दो लाख बच्चे पढ़ रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार चार जून को पूरे राज्य में उन बच्चों का हेड काउंट कराएगी जो बच्चे प्रचलित स्कूल व्यवस्था में नहीं पढ़ते।
सरकार ऐसे बच्चों के साथ उन तमाम बच्चों की भी गिनती करेगी जिन्हें कोई शिक्षा नहीं मिल पाती। ऐसे बच्चों का हेड काउंट कर सरकार उनकी संख्या जानना चाहती है, ताकि उन बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा में लाने के लिए आने वाले खर्च का अंदाजा सरकार को लग सके।
सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, इस पहल केवल धार्मिक शिक्षा पाकर सार्वजनिक जीवन की प्रतियोगिता में पिछड़ रहे बच्चों को मुख्यधारा में लाने की है।
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