
- मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने महाकालेश्वर मंदिर गर्भगृह में VIP प्रवेश की अनुमति प्रशासन के विवेक पर निर्भर बताई है.
- कोर्ट ने मामले में दखल देने से इनकार कर दिया और कहा कि ‘VIP’ की परिभाषा किसी कानून-कायदे में नहीं दी गई है.
- याचिका में आरोप था कि मंदिर प्रशासन मनमाने ढंग से कुछ व्यक्तियों को गर्भगृह में प्रवेश की सुविधा देता है.
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने अपने एक आदेश में कहा है कि उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह में प्रवेश के लिए अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों (वीआईपी) को अनुमति देना प्रशासन के विवेक पर पूरी तरह निर्भर है. हाई कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि ‘वीआईपी' की परिभाषा किसी भी कानून-कायदे में नहीं दी गई है. न्यायमूर्ति विवेक रुसिया और न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने इंदौर के निवासी दर्पण अवस्थी की जनहित याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.
याचिका में आरोप लगाया गया था कि महाकालेश्वर मंदिर के प्रशासक द्वारा ‘भेदभावपूर्ण और मनमाने तरीके' से कुछ तथाकथित 'वीआईपी' को ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह में प्रवेश की मंजूरी देकर भगवान शिव को जल अर्पित करने की सुविधा प्रदान की जा रही है, जबकि आम श्रद्धालुओं को गर्भगृह के अंदर दाखिल होने की अनुमति नहीं है.
हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका
हाई कोर्ट ने 28 अगस्त को याचिका खारिज करते हुए कहा,‘‘याचिकाकर्ता ने महाकालेश्वर मंदिर की प्रबंध समिति की कार्यवाही प्रस्तुत की है, जिससे पता चलता है कि गर्भगृह में प्रवेश के संबंध में कोई खास मनाही नहीं है. (उज्जैन के) जिलाधिकारी और महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक की अनुमति से ही वीआईपी, गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं, इसलिए याचिका में तय नहीं किया जा सकता कि दोनों सक्षम प्राधिकारियों की राय में कौन वीआईपी है और कौन नहीं.'
पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति को 'वीआईपी' मानकर उसे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति देना सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर पूरी तरह निर्भर है.
वीआईपी कौन? यह अदालत तय नहीं कर सकती: हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने आदेश में कहा,‘‘किसी विशेष दिन किसी व्यक्ति की स्थिति को देखते हुए उसे भगवान (शिव) को जल चढ़ाने की अनुमति देने के उद्देश्य से वीआईपी मानने के लिए जिलाधिकारी सक्षम प्राधिकारी होगा. मंदिर की प्रबंध समिति द्वारा वीआईपी माने जाने वाले व्यक्तियों की कोई स्थायी सूची या प्रोटोकॉल प्रकाशित नहीं किया गया है. इसलिए यह अदालत तय नहीं कर सकती कि किसी विशेष दिन महाकालेश्वर मंदिर पहुंचने वाले व्यक्तियों में से कौन वीआईपी है.''
अदालत ने कहा कि किसी भी वैधानिक अधिनियम या नियम में 'वीआईपी' को परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए कोई भी व्यक्ति जिसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है, उसे किसी विशेष दिन और समय पर 'वीआईपी' माना जा सकता है. पीठ ने रेखांकित किया कि यह व्यवस्था देश के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू है.
याचिका के आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: हाई कोर्ट
अदालत ने जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ‘व्यक्तिगत रूप से व्यथित व्यक्ति' प्रतीत होता है और उसके कहने भर से याचिका के आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.
इंदौर से करीब 50 किलोमीटर दूर उज्जैन धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र है, जहां भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए हर रोज बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
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