मध्यप्रदेश ने साल 2011 में ही जैविक कृषि नीति तैयार कर उस पर अमल शुरू कर दिया था. आज दावा है कि मध्यप्रदेश न केवल जैविक कृषि लागू करने वाला देश का पहला प्रदेश है बल्कि देश में सर्वाधिक प्रमाणित जैविक कृषि क्षेत्र वाले प्रदेश का तमगा भी उसे हासिल है. लेकिन क्या इस दावे में दम है. खासकर अगर कपास की बात करें तो कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए नोडल एजेंसी-कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने हाल ही में एक प्रमुख प्रमाणीकरण एजेंसी का लाइसेंस निलंबित किया है, जिसके बाद ये सवाल और गंभीर हो गये हैं.
हाल ही में नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रमोशन (एनपीओपी) ने अपनी जांच में पाया कि हैदराबाद की एक प्रमाणीकरण एजेंसी ने न केवल गैर-जैविक तरीकों से उत्पादिक कपास को जैविक रूप में मंजूरी दी थी, बल्कि बीटी कपास को भी जैविक रूप में प्रमाणित कर दिया. इनमें से कई उत्पादक समूह कपास का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के थे. इस खेल में कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं. जिन किसानों के नाम पर जैविक खेती हो रही है, उनमें से कई कागज़ों पर हैं तो कुछ को पता तक नहीं है कि वो उन एफपीओ का हिस्सा हैं, जो केवल जैविक कपास वालों के लिए थे. मध्यप्रदेश में खरगौन जिले के ढाबला में बहुत सारे किसानों के नाम पर जैविक खेती कागजों में हो रही है.
गांव के सरपंच नरसिंह अलावे कहते हैं हमारे एरिया में जैविक खेती बहुत कम होती है, होती ही नहीं है. यहां प्रमुख फसल हमारे यहां कपास है, लेकिन जैविक कपास होता ही नहीं है. कपास मंडी ले जाते हैं. जैविक खेती हमारे एरिया में है ही नहीं.
बता दें कि खरगौन कपास की बड़ी बेल्ट है. कृषि विभाग कहता है कि सिर्फ 3 कंपनियों ने कपास की जैविक खेती में किसानों से अनुबंध किया है. ज़िले में कृषि विभाग के उपसंचालक एम एल चौहान ने कहा कि हमारे यहां 375 गांवों में 1700 किसानों के यहां 12890 हैक्टेयर में जैविक कपास की खेती करवा रहे हैं. यहां कंप्लीट प्रोडक्ट तैयार होकर विदेश में निर्यात हो रहा है.
राज्य में जैविक खेती का कुल क्षेत्र लगभग 16 लाख 37 हजार हेक्टेयर है जो देश में सर्वाधिक है. जैविक उत्पाद का उत्पादन 14 लाख 2 हजार मी.टन रहा, ये भी देश में सर्वाधिक होने का दावा है. राज्य ने पिछले वित्त वर्ष में 2683 करोड़ रुपये के मूल्य के 5 लाख मी.टन से अधिक के जैविक उत्पाद निर्यात किये हैं. देश से सालाना करीब 1,20,000 टन जैविक कपास का निर्यात होता है. इसे जैविक कपास को रूप में ये एजेंसियां ही प्रमाणित करती हैं. लेकिन इस तरह के मामले सामने आने के बाद अब स्थानीय विधायक केदार डावर कह रहे हैं कि मामले को विधानसभा में उठाएंगे. ऐसे कागजों पर साइन कराके फंडिंग हो रही है तो निश्चित तौर पर जांच कराएंगे और विधानसभा तक इस मामले को ले जाएंगे.
अहम बात ये है कि जैविक कपास उत्पादन के ये इलाके नर्मदा किनारे है. सरकार अब वहां जैविक खेती को और बढ़ावा देना चाहती है, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि खुद सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि नर्मदा में प्रदूषण इतना ज्यादा है कि उससे सिंचित फसल को जैविक खेती नहीं माना जा सकता.
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ दिनों पहले कहा था कि मध्यप्रदेश में हमने तय किया है कि 5 किमी दाएं तट पर, 5 किमी बाएं तट पर जैविक खेती करेंगे. मप्र सरकार खुद पहल कर रही है प्राकृतिक खेती की, ताकि केमिकल फर्टिलाइजर से मुक्त करके हम लोगों की और धरती की रक्षा कर सकें. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा हमारे यहां अधिकारी जैविक खेती वाले हमारे किसानों की जांच करने आए तो उन्होंने ही साफ कहा था कि नर्मदा का पानी इस्तेमाल करेंगे तो जैविक खेती नहीं माना जाएगा. अजनार पानी का टेस्ट करवाए तो पीने लायक नहीं है, इसी नर्मदा के पानी में जो पदार्थ आते हैं, वो इसे गंदा कर रहे हैं.
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