साल था 1996. 11वीं लोकसभा चुनाव (LokSabha Elections) के नतीजों ने सियासी पंडितों को कन्फ्यूज कर डाला था. जनादेश इस कदर बंटा था कि सरकार कैसे बनेगी यह सवाल था? बीजेपी के वोट नहीं बढ़े थे पर सीटें 40 बढ़ गई थीं. वह 161 के नंबर के साथ नंबर-1 पार्टी थी.कांग्रेस की बुरी गत हुई थी. देश की इस सबसे पुरानी पार्टी ने वोट शेयर में अपने जिंदगी की सबसे बड़ी गिरावट देखी थी.वोट 30 पर्सेंट से नीचे जा टिका था.उससे करीब 8 पर्सेंट कम वोट पाने वाली बीजेपी सरकार गठन की तैयारी में थी. लेकिन असली फायदा क्षेत्रीय क्षत्रपों को हुआ था. मायावती के वे सुनहरे दिन थे. 2 पर्सेंट वोट उसके खाते में जुड़े थे. यूपी में बीएसपी का वोट शेयर बढ़कर 20 हो गया था. और दूसरे क्षेत्रीय दलों को भी 3 फीसदी फोटो का फायदा हुआ था. तो यह था देश में गठबंधन की राजनीति के सबसे पेचीदा और रोमांचक दौर का ट्रेलर. जिसकी पिक्चर अगले पूरे पांच साल चली.
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राजनीति के इतिहास में 1996 का वे दौर...
साल 1996 और देश में 13 दिन की सरकार, ये देखते ही आपके जहन में भी अटल बिहारी वायपेयी की उस सरकार का किस्सा ताजा हो गया होगा, जब 13 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई थी. गौर करने वाली बात यह है कि ये सरकार सिर्फ बीजेपी की नहीं थी. इस सरकार में शामिल थे कई और दल. 1996 में हुए ग्यारहवी लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था. ये कहानी है गठबंधन के उस दौर की, जब बीजेपी 161 सीटों के साथ सबसे बड़ा दल बनकर उभरा था. जबकि कांग्रेस 140 सीटों के साथ दूसरा बड़ा दल था, लेकिन कांग्रेस ने तो पहले ही सरकार न बनाने का फैसला ले लिया, वजह थी कांग्रेस के कई बड़े नेता का अलग पार्टी बना लेना. इसीलिए ज्यादा सीटें इन क्षेत्रीय दलों के पाले में चली गई. लोकसभा की 543 सीटों में से 129 क्षेत्रीय दलों के पास थीं. अब सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते तत्कालीन राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया. 16 मई 1996 इतिहास की वो तारीख जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के 13वें प्रधानमंत्री तो बने लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर सके. नतीजन उनकी सरकार गिर गई.
कब बनी संयुक्त मोर्चा की पहली सरकार?
फिर बनी संयुक्त मोर्चा के गठबंधन वाली सरकार... 1 जून 1996 को जेडीएस के एचडी देवेगौड़ा 13 दलों के संयुक्त मोर्चा गठबंधन के सहयोग से सरकार बनाने में कामयाब तो हो गए, लेकिन उनकी सरकार भी महज 18 महीने ही चल सकी. 21 अप्रैल 1997, ये वो तारीख है जब देवेगौड़ा की सरकार में विदेश मंत्री रहे इंद्र कुमार गुजरात प्रधानमंत्री बने. वह भी 11 महीने ही इस पद पर रह सके. इसके बाद गठन हुआ एनडीए का. 1998 में मध्यावधि चुनाव कराने पड़ गए. और अब वह समय था जब NDA के सहयोग से वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री बने. इस बीच उनके सामने लोकसभा में बहुमत साबित करने की चुनौती आ गई. विश्वास मत के दौरान NDA गठबंधन की साथी AIADMK की जयललिता ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार फिर गिर गई. अटल बिहारी वाजपेयी 13 अक्टूबर 1999 में फिर से प्रधानमंत्री बने.
क्या था 13 दलों का संयुक्त मोर्चा?
साल 1996 में जब वाजपेयी की सरकार महज 13 दिनों में गिर गई उसके बाद 13 दलों ने मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाया. 1996 और 1997 में देश में संयुक्त मोर्चा के सहयोग से दो सरकारें बनीं. इस मोर्चा की पहली सरकार 1997 तक चली. पहली बार सीएम एचडी देवेगौड़ा बने और उनके इस्तीफे के बाद इंद्र कुमार गुजरात ने सत्ता संभाली. जनता दल, समाजवादी पार्टी, डीएमके, तमिल मनिला कांग्रेस, असम गण परिषद और टीडीपी समेत 13 दल संयुक्त मोर्चा में शामिल थे. 1998 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन हुआ, जिसे आज सभी एनडीए के नाम से जानते हैं.
गठबंधन सरकार का चलन कितना पुराना?
देश में एक बार फिर से मोदी सरकार बनने जा रही है, हालांकि यह सिर्फ बीजेपी की सरकार नहीं, बल्कि NDA सरकार होगी. एनडीए 41 दलों का वो गठबंधन है, जिसकी अगुवाई बीजेपी कर रही है. हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब देश में गठबंधन की सरकार बन रही है. 2014 से लेकर अब तक भी गठबंधन में ही देश की सरकार चलती आ रही है. गठबंधन की सरकारों का चलन दशकों पुराना है.
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