लोकसभा चुनाव की जारी मतगणना के दौरान मध्यप्रदेश के इंदौर में 'नोटा' (उपरोक्त में से कोई नहीं) ने बिहार के गोपालगंज का पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हुए अब तक 1,27,277 वोट हासिल कर लिए हैं. इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के नाम वापस लेने के बाद पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार के खिलाफ 'नोटा' बटन दबाने के लिए अभियान चलाया था. इंदौर में 'नोटा' निवर्तमान सांसद एवं भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी को छोड़कर अन्य 13 उम्मीदवारों को मात दे चुका है.
लालवानी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रत्याशी संजय सोलंकी से 6,85,316 वोट के रिकॉर्ड अंतर से आगे हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 'नोटा' को बिहार की गोपालगंज सीट पर देशभर में सर्वाधिक वोट मिले थे. तब इस क्षेत्र के 51,660 मतदाताओं ने 'नोटा' का विकल्प चुना था और कुल मतों में से करीब पांच प्रतिशत वोट 'नोटा' के खाते में गए थे.
इससे पहले, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 'नोटा' को तमिलनाडु के नीलगिरि में 46,559 वोट मिले थे और 'नोटा' ने कुल डाले गए मतों का करीब पांच फीसद हिस्सा हासिल किया था. उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद 'नोटा' के बटन को सितंबर 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में शामिल किया गया था. मतदान का यह विकल्प किसी चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को नकारने का विकल्प देता है.
इंदौर में कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने पार्टी को तगड़ा झटका देते हुए नामांकन वापसी की आखिरी तारीख 29 अप्रैल को अपना पर्चा वापस ले लिया और वह इसके तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए थे. नतीजतन, इस सीट के 72 साल के इतिहास में कांग्रेस पहली बार चुनावी दौड़ से बाहर हो गई. इसके बाद कांग्रेस ने स्थानीय मतदाताओं से अपील की कि वे ईवीएम पर 'नोटा' का बटन दबाकर भाजपा को सबक सिखाएं.
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