लोकसभा चुनाव 2024 जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, विपक्ष की एकजुटता की कवायद तेज होने के साथ-साथ इस पर सवाल भी उठते जा रहे हैं. साल 2024 से पहले मौजूदा वर्ष 2023 में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और छह राज्यों के चुनाव होने हैं. पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव हो चुके हैं. कर्नाटक, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव आने वाले समय में होने हैं. लोकसभा चुनाव से पहले 'सेमीफाइनल' कहे जा रहे इन विधानसभा चुनावों के परिणामों से कुछ हद तक यह साफ हो जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) के खिलाफ विपक्ष लोकसभा चुनाव में कितना एकजुट होगा और कैसा प्रदर्शन करेगा? फिलहाल पूर्वोत्तर के राज्यों के नतीजों ने सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस (Congress) को आईना दिखा दिया है. इन चुनाव परिणामों से यह भी साफ हो गया है कि क्षेत्रीय पार्टियां अपने राज्यों में भी अपने बलबूते सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पा रहीं.
तीन मार्च को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (TMC) की नेत्री ममता बनर्जी ने ऐलान किया था कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव अकेले अपने बलबूते लड़ेगी. ममता के 'एकला चलो रे' के नारे के एक पखवाड़े के बाद ही उनकी और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी (SP) के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मुलाकात हुई, फिर दोनों ने मिलकर अगला लोकसभा चुनाव गठबंधन करके लड़ने की घोषणा कर दी. उन दोनों की मंशा कांग्रेस से परहेज करते हुए क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की है. अखिलेश ने तो साफ तौर पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल उठाया. ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने संकेत दिए हैं कि वे कांग्रेस और बीजेपी से दूरी बनाकर रखेंगे. उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए क्षेत्रीय पार्टियों से बातचीत करने के संकेत भी दिए हैं. ममता बनर्जी बीजू जनता दल (BJD) प्रमुख और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से जल्द ही मुलाकात करने वाली हैं.
गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस को सौंपने पर विपक्ष में असहमति
तृणमूल और समाजवादी पार्टी की गठबंधन की घोषणा से पहले कांग्रेस के विपक्षी एकता को लेकर दिए गए बयान से बवाल हुआ था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 21 फरवरी को नागालैंड में दावा किया था कि अगले साल केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में गठबंधन सरकार बनेगी. इसके अगले ही दिन उन्होंने सफाई दी कि सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे. खरगे ने बात संभालने की कोशिश की लेकिन इसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद ने लोकसभा चुनाव में विपक्ष के गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस को सौंपने का आह्वान किया. बात यहीं नहीं रुकी, उन्होंने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने की भी पेशकश कर दी. उन्होंने इसे कांग्रेस और देश के लोगों की 'मन की बात' निरूपित किया. कांग्रेस के रुख को लेकर विपक्षी दलों में तीखी प्रतिक्रिया हुई. क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की आलोचना करते हुए उसे विपक्ष का नेतृत्व करने के बजाय आत्ममंथन करने की सलाह दी.
विपक्ष के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस का दावा है कि उसके अलावा सिर्फ बीजेपी ही राष्ट्रीय दल है. कांग्रेस की तीन राज्यों में सरकारें हैं और तीन राज्यों में वह गठबंधन सरकारों का हिस्सा है. कांग्रेस खुद के सबसे बड़े विपक्षी दल होने का दावा करती है क्योंकि वह 10 राज्यों में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है.
कांग्रेस को तमिलनाडु में एमके स्टालिन की पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (DMK), बिहार में लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD), बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) का साथ मिलने का विश्वास है. वह वामपंथी दलों को भी साथ लेकर विपक्षी गठबंधन की तैयारी कर रही है.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को परे रखते हुए विपक्ष के तीसरे मोर्चे की कवायद लेकर कांग्रेस ने चेताया है. छत्तीसगढ़ में हुए कांग्रेस के विचार-मंथन सम्मेलन में कांग्रेस ने कहा कि तीसरा मोर्चा चुनाव में सिर्फ बीजेपी की मदद करेगा. उसने कहा कि बीजेपी से मुकाबला करने के लिए समान विचारधारा वाले धर्मनिरपेक्ष दलों को एकजुट होकर गठबंधन करना चाहिए. एनडीए का मुकाबला करने के लिए एकजुट विपक्ष की तत्काल जरूरत है. किसी तीसरी ताकत के उभरने से बीजेपी और एनडीए को लाभ मिलेगा.
जेडीयू और आरजेडी कांग्रेस के साथ
जनता दल यूनाईटेड के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में अपनी गठबंधन सरकार में सहयोगी कांग्रेस को विपक्ष की अगुवाई करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उनका कहना है कि, कांग्रेस को विपक्ष की एकता के लिए पहल करनी चाहिए. यदि यह एकजुटता सही तरीके से हुई तो बीजेपी लोकसभा चुनाव में 100 सीटों पर सिमट जाएगी. उनका यह भी कहना है कि कांग्रेस के बिना विपक्ष में एकता संभव नहीं है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे प्रधानमंत्री बनने के महत्वाकांक्षी हैं और बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी का उत्तराधिकार आरजेडी के नेता व बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सौंपना चाहते हैं. हालांकि तेजस्वी यादव ने कहा है कि न तो उन्हें मुख्यमंत्री बनना है और न ही नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री. लेकिन वक्त के गर्त में दबीं वास्तविकताएं तभी सामने आएंगी जब चुनाव में विपक्ष कामयाब होगा.
कांग्रेस और बीजेपी से अलग तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद
क्षेत्रीय दलों के कुछ नेता लोकसभा चुनावों से पहले एकजुट होकर तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश में जुट गए हैं. हालांकि तीसरे मोर्चे के लिए भी अलग-अलग विचार सामने आ रहे हैं, किसी एक झंडे के नीचे आने को लेकर सहमति नहीं बन रही है. इसके पीछे जहां सबके अपने अलग राजनीतिक गणित हैं, वहीं सबकी अपनी महत्वाकांक्षाएं भी हैं.
तेलंगाना के क्षेत्रीय दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS), जिसका नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (BRS) कर दिया गया है, के अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (KCR) बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का मोर्चा बनाने की कवायद में सबसे आगे चल रहे हैं. उन्होंने महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार सहित विपक्ष के कई नेताओं के साथ इसको लेकर विचार मंथन किया है. हालांकि केसीआर कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहते और शिवसेना व एनसीपी कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में पिछली सरकार चला चुके हैं इसलिए वे कांग्रेस को छोड़ना नहीं चाहते. शरद पवार ने तो साफ कहा है कि कांग्रेस को किसी वैकल्पिक मोर्चे से बाहर नहीं छोड़ा जा सकता. ऐसे में केसीआर को शिवसेना और एनसीपी का साथ मिलेगा, इसमें संदेह है.
उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने यह संकेत भी दे दिए हैं कि वह कांग्रेस को छोड़कर केसीआर के साथ नहीं जाएगी. उसने कहा है कि अगर सभी विपक्षी दल समय पर सतर्क नहीं हुए और एकजुट नहीं हुए तो 2024 का लोकसभा चुनाव देश का आखिरी चुनाव साबित होगा. शिवसेना के निशाने पर वे क्षेत्रीय दल हैं जो कांग्रेस को अस्वीकर कर रहे हैं. शिवसेना ने कहा है कि, ममता बनर्जी, केसीआर बीजेपी से लड़ने के लिए अपनी अलग खिचड़ी पका रहे हैं, जिसका कोई मतलब नहीं है. कांग्रेस से द्वेष रखकर बीजेपी की मौजूदा तानाशाही से कैसे लड़ेंगे? इस पहेली को पहले सुलझाना होगा.
बीआरएस को कांग्रेस स्वीकार्य नहीं
कांग्रेस और बीआरएस के बीच कितनी तल्खी है, इसका अंदाजा हाल ही में के चंद्रशेखर राव की बेटी और बीआरएस की नेत्री कलवकुंतला कविता (K Kavitha) की ओर से दिए गए एक बयान से साफ हो जाता है. कविता ने कहा कि यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराना चाहती है, तो उसे क्षेत्रीय दलों के साथ 'टीम प्लेयर' बनना चाहिए. उनका कहना है कि कांग्रेस अब एक राष्ट्रीय पार्टी नहीं है. कांग्रेस अपना अहंकार छोड़कर कब वास्तविकता का सामना करेगी?
केसीआर जहां विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं वहीं वे अपनी पार्टी को राष्ट्रीय दल बनाने की कोशिश में भी जुटे हैं. पहले उन्होंने अपनी पार्टी के नाम में से 'तेलंगाना' हटाकर 'भारत' जोड़ा और फिर उनकी हाल ही में महाराष्ट्र में हुई रैली इसी कवायद का हिस्सा है. बीआरएस को राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए कम से कम चार राज्यों में एक राज्य पार्टी के रूप में मान्यता की जरूरत है. उसे यह पाने के लिए किन्हीं चार राज्यों और चार लोकसभा सीटों पर छह प्रतिशत वोट हासिल करने पड़ेंगे. या फिर कम से कम तीन राज्यों में दो फीसदी लोकसभा सीटें (11 सीटें) जीतनी होंगी. इस लक्ष्य को हासिल किए बिना केसीआर की पार्टी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी नहीं बन सकती है. केसीआर उन असंतुष्ट किसानों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं जो केंद्र सरकार के खिलाफ लंबा आंदोलन चला चुके हैं. उन्हें भरोसा है कि किसानों के वोटों के बलबूते वे अपनी पार्टी का विस्तार करने में कामयाब हो जाएंगे.
विपक्षी दलों ने अरविंद केजरीवाल को किया निराश
इधर, आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि उनको अब तक विपक्षी दलों का स्पष्ट समर्थन नहीं मिला है. अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी एकता के उद्देश्य से 18 मार्च को आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को निमंत्रित किया था. इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव आदि शामिल थे. लेकिन केजरीवाल की यह कोशिश नाकामयाब हुई और यह बैठक ही नहीं हो सकी. यहां तक कि केसीआर, जिनके साथ पिछले कुछ अरसे में केजरीवाल की नजदीकियां काफी बढ़ी हैं, भी इस बैठक के लिए दिल्ली नहीं आए.
विपक्षी दलों में राजनीतिक विचारधारा का द्वंद
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए विपक्ष की एकता को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों में एक राय नहीं बन रही है. समस्या यह है कि कांग्रेस और बीजेपी के अलावा देश में कोई भी ऐसा दल नहीं है जिसका राष्ट्रीय स्तर पर जनाधार हो. सभी दल अपने-अपने राज्यों तक सीमित हैं. उनका सीमित दायरा होने से स्वाभाविक रूप से उनका जनाधार भी क्षेत्र विशेष तक सीमित है. इसके अलावा वैचारिक रूप से भी इन दलों के बीच मत भिन्नता है. ऐसे में कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो भले ही काफी सिमट चुकी हो, लेकिन उसे, उसकी विचारधारा को देश भर में जाना-पहचाना जाता है. क्षेत्रीय दल भले ही सीमाओं से बंधे हों लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाएं बड़ी हैं.
बड़ा सवाल यह भी है कि अलग-अलग विचारधाराओं वाले दल यदि साथ आए भी तो वे जनता के सामने किस विचारधारा को लेकर जाएंगे? विपक्ष में एकजुटता की कोशिशें तो बहुत हो रही हैं और यह सिलसिला लंबा चलने वाला है, लेकिन वास्तव में विपक्ष क्या एकजुट हो पाएगा? इस सवाल का जवाब मिलना फिलहाल बहुत मुश्किल नजर आ रहा है.
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