
दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की 39 सीटों में से एक, नीलगिरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का एक समृद्ध राजनीतिक इतिहास है. इसका मुख्यालय ऊंटी है, ये इलाका पूरी तरह से पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है. इस लोकसभा का गठन 1952 में किया गया था. कांग्रेस ने इस निर्वाचन क्षेत्र से सात बार जीत हासिल की है. सबसे पहले 1957 में सी. नंजप्पा यहां से जीते थे.
कोयंबटूर, नीलगिरी, इरोड और त्रिपुर जिलों में फैले नीलगिरी निर्वाचन क्षेत्र में छह विधानसभा की सीटें शामिल हैं. इनमें से चार सीटों पर जहां एआईएडीएमके का दबदबा है, वहीं एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली कांग्रेस और डीएमके एक-एक सीट पर काबिज हैं.
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आर. प्रभु यहां से सबसे लंबे समय तक सांसद रहे, उन्होंने 1980 से 1991 तक लगातार चार बार जीत हासिल की और इसके बाद 2004 में कांग्रेस के टिकट पर भी जीते. वो राजीव गांधी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. इस सीट से बीजेपी के मास्टर मथन दो बार जीते हैं.
ये सीट सात बार से कांग्रेस के कब्जे में है. इसके अलावा डीएमके ने तीन बार इस सीट पर कब्जा किया है, जयललिता की अगुवाई वाली एआईएडीएमके ने दो बार इस सीट पर जीत हासिल की है, जबकि बीजेपी ने लगातार दो बार इस सीट पर विजय पताका लहराया और एक बार 1971 में एम.के. नन्जा गौडर के नेतृत्व वाली स्वतंत्र पार्टी ने इस सीट पर कब्जा किया.
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डीएमके के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा वर्तमान में इस सीट से सांसद हैं. उन्होंने इस सीट से 2009 और 2019 में जीत हासिल की है. राजा की राजनीतिक यात्रा विवादों से भरी रही है, विशेष रूप से 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर वो चर्चा में रहे.
नीलगिरी में 52% ग्रामीण मतदाता और 48% शहरी निवासी हैं. वहीं जनसंख्या के मामले में 90% हिंदू, 5% मुस्लिम और बाकी 5% में अन्य समुदाय के लोग हैं. यहां अनुसूचित जाति (एससी) मतदाता 24.8%, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) मतदाता 3.3% हैं.
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