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भारत में हो रहा लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव बनने जा रहा : विशेषज्ञ का दावा

वाशिंगटन डीसी से संचालित गैर-लाभकारी संस्थान ‘ओपन सीक्रेट्स डॉट ओआरजी’ के अनुसार भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, प्रति मतदाता खर्च लगभग 1,400 रुपये होने का अनुमान है.

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भारत में हो रहा लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव बनने जा रहा : विशेषज्ञ का दावा
राजनीतिक दल कॉर्पोरेट ब्रांड की तरह काम कर रहे हैं और पेशेवर एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं.
कोलकाता:

भारत में हो रहा इस साल का लोकसभा चुनाव खर्च के मामले में पिछले रिकॉर्ड तोड़ने और दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव होने जा रहा है. एक चुनाव विशेषज्ञ ने यह बात कही. चुनाव संबंधी खर्चों पर पिछले करीब 35 साल से नजर रख रहे गैर-लाभकारी संगठन ‘सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज' (सीएमएस) के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने दावा किया कि इस लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च 1.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2019 में खर्च किए गए 60,000 करोड़ रुपये से दोगुने से भी अधिक है.

राव ने कहा कि इस व्यापक व्यय में राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और निर्वाचन आयोग सहित चुनावों से संबंधित प्रत्यक्ष या परोक्ष सभी खर्च शामिल हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का प्रयास कर रही है और जानकारों ने चुनाव प्रचार में पार्टी के प्रभुत्व की बात कही है.

राव ने कहा कि उन्होंने प्रारंभिक व्यय अनुमान को 1.2 लाख करोड़ रुपये से संशोधित कर 1.35 लाख करोड़ रुपये कर दिया, जिसमें चुनावी बॉन्ड के खुलासे के बाद के आंकड़े और सभी चुनाव-संबंधित खर्चों का हिसाब शामिल है.

‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' (एडीआर) ने हाल में भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की अत्यंत कमी की ओर इशारा किया था. उसने दावा किया कि 2004-05 से 2022-23 तक, देश के छह प्रमुख राजनीतिक दलों को कुल 19,083 करोड़ रुपये का लगभग 60 प्रतिशत योगदान अज्ञात स्रोतों से मिला, जिसमें चुनावी बॉन्ड से प्राप्त धन भी शामिल था. हालांकि, एडीआर ने इस लोकसभा चुनाव के लिए कुल चुनाव व्यय का कोई अनुमानित आंकड़ा पेश नहीं किया.

राव ने कहा, ‘‘चुनाव पूर्व गतिविधियां पार्टियों और उम्मीदवारों के प्रचार खर्च का अभिन्न अंग हैं, जिनमें राजनीतिक रैलियां, परिवहन, कार्यकर्ताओं की नियुक्ति और यहां तक कि नेताओं की विवादास्पद खरीद-फरोख्त भी शामिल है.'' उन्होंने कहा कि चुनावों के प्रबंधन के लिए निर्वाचन आयोग का बजट कुल व्यय अनुमान का 10-15 प्रतिशत होने की उम्मीद है.

वाशिंगटन डीसी से संचालित गैर-लाभकारी संस्थान ‘ओपन सीक्रेट्स डॉट ओआरजी' के अनुसार भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, प्रति मतदाता खर्च लगभग 1,400 रुपये होने का अनुमान है. उसने कहा कि यह खर्च 2020 के अमेरिकी चुनाव के खर्च से ज्यादा है, जो 14.4 अरब डॉलर या लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये था.

विज्ञापन एजेंसी डेंटसू क्रियेटिव के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमित वाधवा ने कहा कि इस साल डिजिटल प्रचार बहुत ज्यादा हो रहा है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल कॉर्पोरेट ब्रांड की तरह काम कर रहे हैं और पेशेवर एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं.
 

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