नई दिल्ली:
सेना के अधिकारियों को उनकी बराबरी के प्रशासनिक अधिकारियों से नीचे नहीं लाया जाएगा. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने मंगलवार को ये भरोसा दिलाया. उनका कहना है कि अगर ऐसी कोई विसंगति हुई है तो सात दिनों के अंदर उसे दूर किया जाएगा. हालांकि रक्षा मंत्रालय की एक चिठ्ठी से सेना के अधिकारियों में ये अंदेशा है कि उनकी हैसियत कम हो गई है.
सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सेना की वाहवाही से लेकर दीवाली पर सैनिकों को शुभकामना संदेश तक के जरिये सरकार ये जताने में लगी है कि वो सेना के हितों को सबसे ज्यादा अहमियत देती है, लेकिन इसी 18 अक्टूबर में रक्षा मंत्रालय से चली ये चिट्ठी कुछ और कह रही है.
इस चिट्ठी के मुताबिक, सेना के कर्नल रैंक का अधिकारी आर्म्ड फोर्सज़ हेडक्वार्टर के सिविल अधिकारियों के ज्वाइंट डायरेक्टर के बराबर है. हालांकि अभी तक सेना का मानना था कि कर्नल एक डायरेक्टर रैंक के अधिकारी के बराबर होता है. इसी तरह ब्रिगेडियर अब डायरेक्टर के बराबर होगा तो मेजर जनरल अब प्रिंसिपल डायरेक्टर के बराबर होगा. पहले ब्रिगेडियर प्रिंसिपल डायरेक्टर और मेजर जनरल संयुक्त सचिव के बराबर होता था. बड़ी बात ये कि ये चिट्ठी में साफतौर पर लिखा गया है कि इस चिट्ठी को रक्षा मंत्री की अनुमति भी है.
इसे लेकर सेना के अधिकारियों का गुस्सा फूट रहा था. कैमरे पर सेवारत अधिकारी कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन वे ऑफ कैमरा कह रहे हैं कि सरकार जान-बूझकर सेना के अधिकारियों को सिविल अधिकारियों के मुकाबले नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है.
सेना में असम रायफल्स के डीजी रहे लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय ने कहा कि सरकार किसको बेबकूफ बना रही है. आज तक सेना की मांगों को लेकर कई कमेटियां बनीं.. क्या हालात सुधरे? हम तो बस इतना ही कह रहे हैं कि जितना सिविल के कर्मचारियों को दे रहे हैं, उतना हमें भी दे दो, लेकिन नहीं देने के लिए कई रास्ते खोज लेते हैं. इसके बावजूद जब कोई भी संकट आता है, सारे मिशनरी फेल हो जाते हैं तो एक सेना ही है जो हालात को संभाल लेती है, लेकिन बात जब रुतबे और पैसे देने की आती है तो हर कोई कन्नी काटता नजर आता है. वैसे, सेना और सरकार के बीच पहले से ही सातवें वेतन आयोग, वन रैंक-वन पेंशन, विकलांगता पेंशन सहित कई मुद्दों पर पहले से ही मतभेद है. ऐसे में इस लेटर बम ने आग में घी का काम किया है.
सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सेना की वाहवाही से लेकर दीवाली पर सैनिकों को शुभकामना संदेश तक के जरिये सरकार ये जताने में लगी है कि वो सेना के हितों को सबसे ज्यादा अहमियत देती है, लेकिन इसी 18 अक्टूबर में रक्षा मंत्रालय से चली ये चिट्ठी कुछ और कह रही है.
इस चिट्ठी के मुताबिक, सेना के कर्नल रैंक का अधिकारी आर्म्ड फोर्सज़ हेडक्वार्टर के सिविल अधिकारियों के ज्वाइंट डायरेक्टर के बराबर है. हालांकि अभी तक सेना का मानना था कि कर्नल एक डायरेक्टर रैंक के अधिकारी के बराबर होता है. इसी तरह ब्रिगेडियर अब डायरेक्टर के बराबर होगा तो मेजर जनरल अब प्रिंसिपल डायरेक्टर के बराबर होगा. पहले ब्रिगेडियर प्रिंसिपल डायरेक्टर और मेजर जनरल संयुक्त सचिव के बराबर होता था. बड़ी बात ये कि ये चिट्ठी में साफतौर पर लिखा गया है कि इस चिट्ठी को रक्षा मंत्री की अनुमति भी है.
इसे लेकर सेना के अधिकारियों का गुस्सा फूट रहा था. कैमरे पर सेवारत अधिकारी कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन वे ऑफ कैमरा कह रहे हैं कि सरकार जान-बूझकर सेना के अधिकारियों को सिविल अधिकारियों के मुकाबले नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है.
सेना में असम रायफल्स के डीजी रहे लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय ने कहा कि सरकार किसको बेबकूफ बना रही है. आज तक सेना की मांगों को लेकर कई कमेटियां बनीं.. क्या हालात सुधरे? हम तो बस इतना ही कह रहे हैं कि जितना सिविल के कर्मचारियों को दे रहे हैं, उतना हमें भी दे दो, लेकिन नहीं देने के लिए कई रास्ते खोज लेते हैं. इसके बावजूद जब कोई भी संकट आता है, सारे मिशनरी फेल हो जाते हैं तो एक सेना ही है जो हालात को संभाल लेती है, लेकिन बात जब रुतबे और पैसे देने की आती है तो हर कोई कन्नी काटता नजर आता है. वैसे, सेना और सरकार के बीच पहले से ही सातवें वेतन आयोग, वन रैंक-वन पेंशन, विकलांगता पेंशन सहित कई मुद्दों पर पहले से ही मतभेद है. ऐसे में इस लेटर बम ने आग में घी का काम किया है.
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