प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
मराठवाड़ा के सूखा पीड़ित इलाकों में भी मनरेगा का फायदा ज़रूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास मौजूद ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक औरंगाबाद ज़िले में 2015-16 में 21,869 परिवारों ने मनरेगा के तहत काम मांगा। लेकिन अब तक इस सूखाग्रस्त ज़िले में ज़रूरतमंदों को औसतन 44 दिनों का रोज़गार ही मिल पाया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ज़िले में 100 दिन का रोज़गार सिर्फ 1917 परिवारों को ही मिल पाया है जो काम मांगने वालों में दस फीसदी से भी कम है।
काम ना मिलने से परेशान किसान अब काम की तलाश में औरंगाबाद शहर में भटकने को मजबूर हैं। सूखा पीड़ित किसान मिथुन चव्हाण ने एनडीटीवी से कहा, "मनरेगा में काम नहीं मिला। गांव छोड़कर औरंगाबाद आया हूं...कोई काम धंधा गांव में नहीं है।" औरंगाबाद ज़िला निवासी पुंडलिक चव्हाण कहते हैं, "3 बार ग्राम सभा में चर्चा हुई, काम मांगा...काम शुरू करने पर चर्चा हुई लेकिन अभी तक कोई काम शुरू नहीं हो पाया...किसी को काम नहीं मिला।"
एनडीटीवी ने जब ग्रामीण विकास मंत्री से इस समस्या के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि समस्या स्थानीय स्तर पर है। केन्द्र इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है। भोपाल में एनडीटीवी से बात करते हुए बीरेन्द्र सिंह ने कहा, "काम देने की ज़िम्मेदारी डिप्यूटी कमिशनर की है...केन्द्र ने अपना काम किया है...हमने 100 से 150 दिन रोज़गार देने को मंज़ूरी दे दी है...।"
पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन मानते हैं कि महाराष्ट्र का रिकॉर्ड मनरेगा में अच्छा रहा है। लेकिन इस बार संकट के इस दौर में काम दिख नहीं रहा है। वो कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद फील्ड में काम दिखना चाहिये था। वहां अगर कोताही है तो इसके लिए राज्य सरकार ज़िम्मेदार है।"
कई महीनों से सूखे के संकट से जूझ रहे लोगों तक मनरेगा का फायदा नहीं पहुंचने से उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। संकट की इस घड़ी में मनरेगा सहारा का एक अहम ज़रिया हो सकता था लेकिन प्रशासनिक कमज़ोरियों की वजह से सूखा-प्रभावित लोगों तक मनरेगा का फायदा सही तरीके से नहीं पहुंच पा रहा है।
काम ना मिलने से परेशान किसान अब काम की तलाश में औरंगाबाद शहर में भटकने को मजबूर हैं। सूखा पीड़ित किसान मिथुन चव्हाण ने एनडीटीवी से कहा, "मनरेगा में काम नहीं मिला। गांव छोड़कर औरंगाबाद आया हूं...कोई काम धंधा गांव में नहीं है।" औरंगाबाद ज़िला निवासी पुंडलिक चव्हाण कहते हैं, "3 बार ग्राम सभा में चर्चा हुई, काम मांगा...काम शुरू करने पर चर्चा हुई लेकिन अभी तक कोई काम शुरू नहीं हो पाया...किसी को काम नहीं मिला।"
एनडीटीवी ने जब ग्रामीण विकास मंत्री से इस समस्या के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि समस्या स्थानीय स्तर पर है। केन्द्र इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है। भोपाल में एनडीटीवी से बात करते हुए बीरेन्द्र सिंह ने कहा, "काम देने की ज़िम्मेदारी डिप्यूटी कमिशनर की है...केन्द्र ने अपना काम किया है...हमने 100 से 150 दिन रोज़गार देने को मंज़ूरी दे दी है...।"
पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन मानते हैं कि महाराष्ट्र का रिकॉर्ड मनरेगा में अच्छा रहा है। लेकिन इस बार संकट के इस दौर में काम दिख नहीं रहा है। वो कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद फील्ड में काम दिखना चाहिये था। वहां अगर कोताही है तो इसके लिए राज्य सरकार ज़िम्मेदार है।"
कई महीनों से सूखे के संकट से जूझ रहे लोगों तक मनरेगा का फायदा नहीं पहुंचने से उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। संकट की इस घड़ी में मनरेगा सहारा का एक अहम ज़रिया हो सकता था लेकिन प्रशासनिक कमज़ोरियों की वजह से सूखा-प्रभावित लोगों तक मनरेगा का फायदा सही तरीके से नहीं पहुंच पा रहा है।
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