सुप्रीम कोर्ट के साथ जुबानी जंग के बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने आज एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि जजों की नियुक्ति में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है. रिजिजू बड़ी संख्या में लंबित मामलों पर संसद में एक सवाल का जवाब दे रहे थे. उन्होंने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की. उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है कि देश भर में पांच करोड़ से अधिक केस लंबित हैं. मंत्री ने कहा कि इसके पीछे मुख्य कारण जजों की नियुक्ति है.
रिजिजू ने कहा, "सरकार ने केसों की लंबितता को कम करने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन जजों के रिक्त पद भरने में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है. कॉलेजियम नामों का चयन करता है, और इसके अलावा सरकार को जजों की नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है."
उन्होंने कहा कि सरकार ने अक्सर भारत के मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को "(जजों के) नाम भेजने के लिए कहा था जो गुणवत्ता और भारत की विविधता को दर्शाते हों और जिसमें महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व मिलता हो." उन्होंने कहा कि, लेकिन मौजूदा व्यवस्था ने संसद या लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित नहीं किया.
उन्होंने कहा, "मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि ऐसा लग सकता है कि सरकार न्यायपालिका में हस्तक्षेप कर रही है, लेकिन संविधान की भावना कहती है कि जजों की नियुक्ति करना सरकार का अधिकार है. यह 1993 के बाद बदल गया."
रिजिजू ने 2014 में लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम का भी उल्लेख किया, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था.
कानून मंत्री ने कहा, "जब तक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव नहीं होता, रिक्त उच्च न्यायिक पदों का मुद्दा उठता रहेगा."
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