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This Article is From Sep 27, 2017

शहीद भगत सिंह ने फांसी से एक दिन पहले लिखा था आखिरी खत, जानिए क्या था उसमें

भगत सिंह 23 मार्च 1931 की उस शाम के लिए लंबे अरसे से बेसब्र थे. एक दिन पहले यानी 22 मार्च 1931 को अपने आखिरी पत्र में भगत सिंह ने इस बात का ज़िक्र भी किया था.

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शहीद भगत सिंह ने फांसी से एक दिन पहले लिखा था आखिरी खत, जानिए क्या था उसमें
शहीद भगत सिंह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: देश के लिए शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने हंसते हंसते फांसी को गले लगा लिया था. जिस दिन उन्हें फांसी दी गई थी उस दिन वो मुस्कुरा रहे थे. मौत से पहले इन देशभक्तों ने गले लगकर भगवान से इसी देश में पैदा करने की गुजारिश की थी, ताकी इस मिट्टी की सेवा ये करते रहें. जिस दिन भगत सिंह और बाकी शहीदों को फांसी दी गई थी, उस दिन लाहौर जेल में बंद सभी कैदियों की आंखें नम हो गईं. यहां तक कि जेल के कर्मचारी और अधिकारी के भी हाथ कांप गए थे धरती के इस लाल के गले में फांसी का फंदा डालने में. जेल के नियम के मुताबिक फांसी से पहले तीनों देश भक्तों को नहलाया गया था. फिर इन्हें नए कपड़े पहनाकर जल्लाद के सामने किया गया. जिसने इनका वजन लिया. मजे की बात ये कि फांसी की सजा के एलान के बाद भगत सिंह का वजन बढ़ गया था. 28 सितंबर 1907 को जन्में इस क्रांतिकरी की जयंती पर देश उन्हें याद कर रहा है. इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं भगत सिंह के आखिरी खत के बारे में जो उन्होंने फांसी के ठीक एक दिन पहले लिखा था.

पढ़ें- जब जेल से भगत सिंह ने बताया था 'मैं नास्तिक क्यों हूँ?'

सच तो ये है कि भगत सिंह 23 मार्च 1931 की उस शाम के लिए लंबे अरसे से बेसब्र थे. एक दिन पहले यानी 22 मार्च 1931 को अपने आखिरी पत्र में भगत सिंह ने इस बात का ज़िक्र भी किया था. भगत सिंह ने खत में लिखा, ‘साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था. मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी. इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा. आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए.’ 

पढ़ें- आजादी के मतवाले भगत सिंह की गौरवशाली गाथा​
 
bhagat singh

कहते हैं फांसी से पहले भगत सिंह ने बुलंद आवाज में देश के नाम एक संदेश भी दिया था. उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए कहा, मैं ये मानकर चल रहा हूं कि आप वास्तव में ऐसा ही चाहते हैं. अब आप सिर्फ अपने बारे में सोचना बंद करें, व्यक्तिगत आराम के सपने को छोड़ दें, हमें इंच-इंच आगे बढ़ना होगा. इसके लिए साहस, दृढ़ता और मजबूत संकल्प चाहिए. कोई भी मुश्किल आपको रास्ते से डिगाए नहीं. किसी विश्वासघात से दिल न टूटे. पीड़ा और बलिदान से गुजरकर आपको विजय प्राप्त होगी. ये व्यक्तिगत जीत क्रांति की बहुमूल्य संपदा बनेंगी.

फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई. तीनों ने एक स्वर में कहा कि हम आपस में गले मिलना चाहते हैं. इजाजत मिलते ही ये आपस में लिपट गए. 

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