पंजाब की पहचान इसकी उपजाऊ मिट्टी, प्रचुर जल संसाधन और महत्वपूर्ण कृषि उत्पादकता को लेकर होती रही है. दरअसल, पंजाब की मिट्टी की संरचना कृषि के लिए अत्यधिक उपयुक्त है. पंजाब में पाई जाने वाली मिट्टी के प्रकारों में जलोढ़, दोमट, रेतीली दोमट और चिकनी मिट्टी शामिल हैं. लेकिन अब पंजाब की मिट्टी की नमी को लेकर ही सवाल उठने लगे हैं. हर साल पराली जलाने से पंजाब की मिट्टी सूख रही है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है.
पंजाब में सोमवार को पराली जलाने के 634 मामले सामने आए. वहीं पुलिस द्वारा किसानों को पराली जलाने से रोकने के लगातार प्रयासों के बावजूद राज्य के कई इलाकों में ये सिलसिला लगातार जारी है. पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ आठ नवंबर तक 1,084 प्राथमिकियां दर्ज की हैं और 7,990 मामलों में 1.87 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है. लेकिन मामले थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. ऐसा कहा जाता रहा है कि दिल्ली में प्रदूषण का एक कारण पंजाब में जलने वाली पराली भी है. ये मामला कोर्ट में भी चल रहा है.
दिल्ली में प्रदूषण के मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "पंजाब में मिट्टी की नमी का कम होना चिंता का विषय है. पंजाब में जमीन धीरे-धीरे सूखती जा रही है, क्योंकि जल स्तर कम होता जा रहा है. यदि ज़मीन सूख गई, तो बाकी सब चीज़ें प्रभावित होंगी. कहीं न कहीं किसानों को धान उगाने के दुष्परिणामों को समझना चाहिए या समझाया जाना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान पंजाब सरकार को भी आड़े हाथों लिया, और कहा, "किसानों को सहायता के मामले में पंजाब को हरियाणा से सीखना चाहिए. किसानों को भी अपनी फसल से पर्यावरण और पानी की उपलब्धता पर पड़ने वाले असर पर भी ध्यान देना चाहिए. अपने फायदे के अलावा भी सोचना चाहिए. किसानों को मशीनों और ईंधन के साथ अन्य जरूरी चीजें मुफ्त मुहैया करानी चाहिए." जस्टिस कौल ने कहा कि धान के अलावा अन्य फसलों पर भी सोचना चाहिए. पंजाब और हरियाणा के अलावा भी अन्य राज्यों को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
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