लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने कहा, पिता को किडनी डोनेट करके बेटी का धर्म निभाया

रोहिणी आचार्य ने NDTV से खास बातचीत में कहा- मैंने डिसाइड किया है कि मेरे मरने के बाद मेरे ऑर्गन डोनेट किए जाएं, डोनेशन बुरी बात नहीं है, आप मरने के बाद भी लोगों को जीवनदान दे सकते हैं

नई दिल्ली :

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को हाल ही में उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने अपनी एक किडनी दान की है. उन्होंने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि उन्होंने पिता को किडनी डोनेट करके बेटी धर्म निभाया है. उन्होंने कहा कि अभी हम लोग ठीक महसूस कर रहे हैं. आप लोगों की दुआ काम आ रही है. 

रोहिणी आचार्य ने कहा कि, ''पापा (लालू यादव) को हमने डॉक्टरों को दिखाने के लिए यहां पर बुलाया था. डॉक्टरों ने कहा था कि किडनी ट्रांसप्लांट ठीक रहेगा. मैं भी वहां थी जब डॉक्टर यह बता रहे थे. मेरा पहला रिएक्शन यही था कि मैं तैयार हूं किडनी देने के लिए. मेरे पति और जीजाजी भी थे वहां. ''

उन्होंने कहा कि, ''इसके बाद हमारे टेस्ट हुए. किडनी के लिए सबसे ज़्यादा परफेक्ट मैच मेरा ही हुआ था, सेकेंड थॉट का सवाल ही नहीं था. सब जानते हैं कि पापा की अहमियत मेरे लिए कितनी है. मेरे बच्चों को भी पता है कि नान-नानी की अहमियत क्या है. सबने मेरा साथ दिया. मेरे बच्चे भावुक हो गए थे. वे कहने लगे कि ममा यू आर फ़ैट, यू कान्ट गिव किडनी टू नानाजी. बच्चे कहने लगे हम देंगे किडनी.
मुझे अच्छा लगा कि मेरे मां-बाप ने जो संस्कार मुझे दिए वह मेरे बच्चों में भी आ गए. परिवार में सब किडनी देना चाहते थे.'' 

रोहिणी आचार्य ने बताया कि, ''मेरा प्रोसेस शुरू हो गया था, मैं यहीं थी. बिहार की जनता हमारा परिवार है, उनके भी मैसेज आ रहे थे कि हम देंगे किडनी. मेरी किडनी मैच कर गई. मां-बाप हमारे लिए भगवान हैं.'' 

उन्होंने कहा कि, ''हमारे घर में लड़का-लड़की में भेदभाव नहीं हुआ. पापा ने हमसे ऊंची आवाज में बात नहीं की. भाईयों को डांट पड़ती थी, लेकिन हमें नहीं. यही संस्कार हमें मिले हैं. मैं क्यों नहीं? यही सवाल था कि मैं क्यों नहीं दे सकती. मैंने कहा जब मैं पीछे हटूंगी तब कोई आए. मेरे बच्चे मुझसे सीखें, मैं यही चाहती थी.'' 

रोहिणी आचार्य ने कहा कि, ''लड़कियों से मैं यही कहूंगी कि शिक्षा के बल पर सब लोगों को गलत साबित करें. इसमें समाज को दोष नहीं दे सकते, परिवार का रोल होता है, हमने बचपन से वही देखा, वही सीखा. रूढ़िवादी मानसिकता के कारण लड़कियों को पढ़ने नहीं देते हैं. बेटियां सब कुछ कर सकती हैं. मेरे मां-बाप ने बेटियों में कभी फर्क नहीं किया, हमारे यहां सब बराबर हैं.'' 

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उन्होंने कहा कि, ''मैंने डिसाइड किया है कि मेरे मरने के बाद मेरे ऑर्गन डोनेट किए जाएं. डोनेशन बुरी बात नहीं है. आप मरने के बाद भी लोगों को जीवनदान देकर जा रहे हो.'' उन्होंने कहा कि, ''ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग होती है, मासूम बच्चों, बेटियों को मार देते हैं, अंग निकाल लेते हैं, बेच देते हैं. यह सब रुकना चाहिए. डोनेशन से बड़ा कोई पुण्य नहीं है. आप कितना भी पढ़ लीजिए अगर आप मां-बाप की सेवा नहीं करेंगे तो अच्छे नागरिक कैसे बनेंगे.''