प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
कांग्रेस ने CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के लिए राज्यसभा के सभापति वेकैंया नायडू को नोटिस सौंपा है. महाभियोग यानी इम्पीचमेंट. यह बेहद जटिल प्रक्रिया है. आइये जानते हैं कि महाभियोग क्या है और इसे लाने की प्रक्रिया क्या है.
1- क्या है महाभियोग :
अगर देश का प्रधान न्यायाधीश या कोई हाईकोर्ट का न्यायाधीश संवैधानिक नियमों के अनुरूप नहीं चलता है तो उसे पद से हटाने के लिए संसद में महाभियोग लाया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 124(4) में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए महाभियोग लाए जाने का प्रावधान है.
2- कैसे लाया जाता है महाभियोग :
किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग की शुरुआत लोकसभा के 100 सांसदों या राज्यसभा के 50 सदस्यों की सहमति के प्रस्ताव से होती है. नोटिस को लोकसभा में स्पीकर तथा राज्यसभा में सभापति स्वीकार या खारिज कर सकते हैं.
3 - तीन सदस्यीय समिति करती है जांच :
प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश और एक कानूनविद को शामिल किया जाता है. यह तीन-सदस्यीय समिति संबंधित जज पर लगे आरोपों की जांच करती है.
4 - जज को भी मिलता है बचाव का मौका :
समिति जांच पूरी करने के बाद अपनी रिपोर्ट पीठासीन अधिकारी को सौंपती है। उसके बाद आरोपी जज को भी अपने
बचाव का मौका मिलता है.
5 - दोष सिद्ध हुआ तो...
जांच रिपोर्ट में अगर आरोपी जज पर लगाए गए दोष सिद्ध हो रहे हैं तो पीठासीन अधिकारी मामले में बहस के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए सदन में वोट करा सकते हैं. प्रस्ताव को पारित होने के लिए दोनों सदनों में उसका पारित होना अनिवार्य है. पारित होने के लिए मिले वोटों का सदन की कुल सदस्य संख्या के आधे से ज़्यादा होना, और मौजूद सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई से ज़्यादा होना अनिवार्य है.
अब तक क्या रहा है इतिहास है...
भारत में अभी तक किसी भी जज को महाभियोग के जरिये हटाया नहीं जा सका है. हालांकि इससे पहले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ वर्ष 2009 में राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था. प्रक्रिया आगे बढ़ने से पहले ही दिनाकरन ने इस्तीफा दे दिया था. इसके अलावा हाईकोर्ट के एक और चीफ जस्टिस के साथ एक जज के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव संसद में पेश हो चुका है.
1- क्या है महाभियोग :
अगर देश का प्रधान न्यायाधीश या कोई हाईकोर्ट का न्यायाधीश संवैधानिक नियमों के अनुरूप नहीं चलता है तो उसे पद से हटाने के लिए संसद में महाभियोग लाया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 124(4) में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए महाभियोग लाए जाने का प्रावधान है.
2- कैसे लाया जाता है महाभियोग :
किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग की शुरुआत लोकसभा के 100 सांसदों या राज्यसभा के 50 सदस्यों की सहमति के प्रस्ताव से होती है. नोटिस को लोकसभा में स्पीकर तथा राज्यसभा में सभापति स्वीकार या खारिज कर सकते हैं.
3 - तीन सदस्यीय समिति करती है जांच :
प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश और एक कानूनविद को शामिल किया जाता है. यह तीन-सदस्यीय समिति संबंधित जज पर लगे आरोपों की जांच करती है.
4 - जज को भी मिलता है बचाव का मौका :
समिति जांच पूरी करने के बाद अपनी रिपोर्ट पीठासीन अधिकारी को सौंपती है। उसके बाद आरोपी जज को भी अपने
बचाव का मौका मिलता है.
5 - दोष सिद्ध हुआ तो...
जांच रिपोर्ट में अगर आरोपी जज पर लगाए गए दोष सिद्ध हो रहे हैं तो पीठासीन अधिकारी मामले में बहस के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए सदन में वोट करा सकते हैं. प्रस्ताव को पारित होने के लिए दोनों सदनों में उसका पारित होना अनिवार्य है. पारित होने के लिए मिले वोटों का सदन की कुल सदस्य संख्या के आधे से ज़्यादा होना, और मौजूद सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई से ज़्यादा होना अनिवार्य है.
अब तक क्या रहा है इतिहास है...
भारत में अभी तक किसी भी जज को महाभियोग के जरिये हटाया नहीं जा सका है. हालांकि इससे पहले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ वर्ष 2009 में राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था. प्रक्रिया आगे बढ़ने से पहले ही दिनाकरन ने इस्तीफा दे दिया था. इसके अलावा हाईकोर्ट के एक और चीफ जस्टिस के साथ एक जज के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव संसद में पेश हो चुका है.
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