
- PM मोदी 22 सितंबर को त्रिपुरा जाएंगे, पुनर्विकसित त्रिपुरेश्वरी मंदिर का उद्घाटन करेंगे और पूजा भी करेंगे.
- त्रिपुरेश्वरी मंदिर केंद्र को प्रसाद योजना के तहत 51 करोड़ रुपये की लागत से पुनर्विकसित किया गया है.
- त्रिपुरा के CM माणिक साहा ने बताया कि यहां 97 करोड़ की लागत से सभी शक्तिपीठों के मॉडल बनाए जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 सितंबर को त्रिपुरा का दौरा करेंगे, जहां वह पुनर्विकसित त्रिपुरेश्वरी मंदिर का उद्घाटन करेंगे. मुख्यमंत्री माणिक साहा ने बताया कि प्रधानमंत्री ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया है. सिपाहीजाला जिले में नीरमहल जल उत्सव को संबोधित करते हुए साहा ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पुनर्विकसित त्रिपुरेश्वरी मंदिर का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया था. उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री मोदी 22 सितंबर को पुनर्विकसित त्रिपुरेश्वरी मंदिर का उद्घाटन करने के लिए आ रहे हैं. इस दौरान वह मंदिर में पूजा-अर्चना भी करेंगे.'
51 शक्तिपीठों में से एक है त्रिपुर सुंदरी मंदिर
त्रिपुरेश्वरी मंदिर दुनिया के विभिन्न देशों में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक है. इसका पुनर्विकास कार्य केंद्र की ‘प्रसाद' (तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान) योजना के तहत 51 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है. सीएम साहा ने कहा कि उनकी सरकार राज्य में आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. उन्होंने कहा कि गोमती जिले के बांडोवर में 97 करोड़ रुपये की लागत से सभी 51 शक्तिपीठों के मॉडल बनाए जा रहे हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा, 'हम सभी 51 शक्तिपीठों के दर्शन नहीं कर सकते, क्योंकि वे बांग्लादेश और नेपाल सहित कई देशों में फैले हुए हैं. बांडोवर में प्रतिकृतियां बन जाने के बाद, लोग आसानी से एक ही स्थान पर 51 शक्तिपीठों के दर्शन कर सकेंगे.'
1930 में बनवाए गए नीरमहल के प्रचार-प्रसार की अपील
साहा ने लोगों से सोशल मीडिया के माध्यम से नीरमहल झील महल का प्रचार करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, 'मैं उदयपुर गया था, जहां मैंने लेक पैलेस की सुंदरता का अनुभव किया, जो हमारे नीरमहल से तुलनीय है. लेकिन बहुत से लोग नीरमहल के बारे में नहीं जानते. मैं आपसे सोशल मीडिया पर नीरमहल का प्रचार करने की अपील करता हूं.'
महाराजा बीर बिक्रम की ओर से 1930 में बनवाए गए नीरमहल को 2007 में ‘रामसर स्थल' घोषित किया गया. दरअसल, 'रामसर स्थल' के तहत वे जगहें आती हैं, जिन्हें रामसर संधि के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व का दर्जा दिया जाता है. आर्द्रभूमियों के संरक्षण और उनके संसाधनों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए 1971 में ईरान के रामसर शहर में इस अंतरराष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे. यह संधि 1975 से प्रभावी है.
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