उत्तराखंड में केदारनाथ पैदल मार्ग पर बारिश और बादल फटने से हुई तबाही ने साल 2013 की आपदा की यादें ताजा कर दी हैं. मंदिर के पास से कल-कल बहती मंदाकिनी का रौद्र रूप डरा रहा है. उसका वेग और जलस्तर इतना बढ़ गया है कि गौरीकुंड का तप्तकुंड पानी में समा गया है. गौरीकुंड में खौफ में यात्रियों को होटल छोड़ आधी रात जंगल की तरफ भागना पड़ा. हालांकि इस आपदा में अभी तक किसी के हताहत होने की खबर नहीं है. लेकिन कई यात्री अभी-भी फंसे हैं. शनिवार सुबह तक करीब 500 यात्री धाम में ही फंसे हुए थे. बाकी यात्री पैदल मार्ग में अलग-अलग जगहों पर हैं. वायुसेना के चिनूक और MI-17 हेलिकॉप्टरों से उनका रेस्क्यू किया जा रहा है. करीब 150 यात्री ऐसे बताए जा रहे हैं, जिनसे उनके परिवार का संपर्क नहीं हो पाया है. केदारनाथ में आखिर बुधवार रात हुआ क्या, अभी वहां क्या हालात हैं, हिमालय के इस सबसे संवेदनशील इलाके में क्या बदलाव दिख रहे हैं, यह जानने के लिए NDTV खबर ने कपाट बंद होने के बाद भी केदारनाथ धाम में रहने वाले ललित महाराज से फोन पर बात की. जानिए उन्होंने क्या बताया...
आखिर केदारनाथ में बुधवार रात हुआ क्या?
ललित महाराज ने बुधवार रात की घटना को याद करते हुए बताया, 'केदारनाध धाम में बुधवार देर शाम से अचानक बारिश तेज होने लगी थी. रात करीब साढ़े आठ बजे बारिश डराने लगी. करीब पौने नौ बजे मैं अपना बर्फ वाला कोट और बूट पहनकर बाहर आया, तो देखा कि मंदाकिनी का जलस्तर बढ़ रहा है. मैंने आश्रम में मौजूद लोगों को बाहर न आने को कहा. बारिश लगातार तेज होती जा रही थी. इस बीच ऊपर ग्लेशियर से कुछ टूटने की बहुत तेज आवाजें भी सुनाई दीं. हालांकि यह अनुमान लगाना मुश्किल था कि यह कहां टूटा है. मंदाकिनी के इस उफान से केदारनाथ धाम और रास्ते में नुकसान तो नहीं पहुंचाया, लेकिन गौरीकुंड में नदी-नालों के पानी ने मिलकर रौद्र रूप ले लिया. मंदाकिनी किनारे स्थित तप्त कुंड पानी में समा गया. इसके साथ ही कुछ ढाबे बह गए.'
'इसके लिए बस इंसान दोषी है'
ललित महाराज केदारनाथ पैदल मार्ग पर हुई इस तबाही के लिए इंसान को ही दोषी मानते हैं. उन्होंने कहा कि हिमालय पर्यटन नहीं, तीर्थाटन की जगह है. यहां का नियम संयम है. लोग पहले ध्यान साधना के लिए आते थे, लेकिन अब सब कारोबार हो गया है. हिमालय को इसी नजरिए से पेश किया भी जा रहा है. पर्यटन के लिए आने वाला सुविधाएं ढूंढता है. यह उसी का नतीजा है. उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हिमालय ने अब जवाब देना शुरू कर दिया है. हम हिमालय को कमजोर करते जा रहे हैं. धाम में हेलिकॉप्टर ज्यादा चल रहे हैं. इससे कंपन हो रहा है.
'फ्रिज में हीटर रख देंगे तो विस्फोट होगा ही'
ललित महाराज कहते हैं कि केदारनाथ में रहते हुए उन्होंने इस बदलाव को महसूस किया है. पहले मंदिर के पीछे सुमेरू पर्वत हमेशा बर्फ से ढका दिखाई देता था. 2013 के बाद इसमें तेज गिरावट आई है. तब जुलाई अगस्त में भी पीछे की पहाड़ियों पर बर्फ दिखती थी, लेकिन अब दिसंबर में भी पहाड़ी खाली दिखाई देते हैं. हिमालय में बर्फ कम गिर रही है. नई बर्फ नहीं पड़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. यह कुछ ऐसा ही जैसे हम किताब को सुरक्षित रखने के लिए कवर लगाते हैं. प्रकृति अब अपने ग्लेशियरों पर यह कवर नहीं चढ़ा रही है. इससे वे पिघल रहे हैं. केदारनाथ जैसी जगर पर कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है. वह उदाहरण देते हैं- सोचिए जरा फ्रिज के अंदर अगर हम हीटर जलाएंगे तो क्या होगा? विस्फोट तो हो ही जाएगा.
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