कर्नाटक अंधविश्वास उन्मूलन बिल 2013 में मानव बलि देने वालों को फांसी की सजा देने का प्रावधान है। इसी तरह काला जादू, तंत्र-मंत्र आदि को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस बिल को मुख्यमंत्री बनने के बाद सिद्धारमैया ने 2013 में नेशनल लॉ स्कूल, कानून और सामाजिक मामलों के विशेषज्ञों से तैयार करवाया था और वह पिछले साल ही शीतकालीन सत्र में सदन में रखना चाहते थे, लेकिन इसके खिलाफ आवाज़ उठी तो उन्हे अपना इरादा बदलना पड़ा। बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस तीनों ही दलों के विधायकों ने परम्पराओं की दुहाई देते हुए इस बिल का विरोध किया था।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया धर्म में कम और कर्म में ज्यादा भरोसा रखते हैं, ऐसे में कर्नाटक के साधू संतों के एक प्रमुख संगठन प्रोग्रेसिव पोंटिफ्फ फोरम को ऐसा लगता है कि सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री रहते ये बिल अगर पास नहीं हुआ तो फिर मामला लटक जाएगा। इसलिए ये संत अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठ गए हैं।
कर्नाटक सूचना तकनीक के क्षेत्र में भले ही आगे हो, लेकिन अंधविश्वास से जुडी ख़बरों की वजह से भी यह राज्य सुर्ख़ियों में रहता है। दक्षिण कर्नाटक का मेड: अस्नाना को खत्म करना सरकार के लिए अब भी एक चुनोती है। ब्राह्मणों के पत्तल पर छोड़े खाने पर 'पिछड़ी' जाति के लोग इस उम्मीद से लोटते हैं की उनकी बिमारी दूर हो जाएगी। स्थानीय भाषा में इसे मेड इस्नाना कहते हैं। वहीं देवदासी प्रथा किसी न किसी रूप में आज भी यहां चल रही है और इसको लेकर विवाद उठता रहता है।
राज्य के मौजूदा बड़े नेताओं का अंधविश्वास से गहरा रिश्ता है। जेडीएस सुप्रीमो देवेगौड़ा ग्रहों की दिशा और दशा की जानकारी लेने के बाद ही घर से बाहर क़दम रखते हैं| उनके बेटे कुमारस्वामी जब मुख्यमंत्री बने तो एक स्वामी जी के आदेश के बाद पहले घर की दिवार ऊंची करवाई, गाय बछड़े पाले, फिर गृह प्रवेश किया। मुख्यमंत्री पद की शपथ येद्दयुरप्पा किस दिन और किस वक़्त लेंगे और क्या पहनेंगे, मंत्रिमंडल का विस्तार किस दिन और किस समय होगा, यह सब ज्योतिषी तय किया करते थे।
ऐसे में सच्चे मार्ग पर धर्म को थामे चलने वाले साधू संत चाहते हैं की धर्म और अंधविश्वास की समझ लोगों में आए ताकि वह धर्म को बेहतर समझ सके। इन संतों की मांग है की 9 नवंबर से बेलगवि में होने वाले विधानसभा सत्र में इस विधेयक को पेश लिया जाए।
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