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This Article is From May 29, 2025

कर्नाटक: हुबली दंगा सहित 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने का आदेश रद्द, हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

अक्टूबर 2024 में कर्नाटक राज्य सरकार ने 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया, जिसमें हुबली दंगा केस भी शामिल था.

कर्नाटक: हुबली दंगा सहित 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने का आदेश रद्द, हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
बेंगलुरु:

कर्नाटक हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए सरकार के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें हुबली दंगा 2022 सहित अन्य 43 आपराधिक मामलों को वापस लिया गया था. हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है. हाई कोर्ट के इस फैसले का मतलब है कि अब हुबली दंगा 2022 सहित अन्य सभी 43 मामलों की जांच फिर से शुरू होगी. 

दरअसल कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें लोक अभियोजकों (Public Prosecutors) को 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने का निर्देश दिया गया था. इन मामलों में दंगा, हत्या का प्रयास और अन्य गंभीर अपराध शामिल थे. यह आदेश दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 321 का उल्लंघन माना गया.

हाईकोर्ट ने कहा,  "याचिका स्वीकार की जाती है, सरकारी आदेश (GO) को रद्द किया जाता है.

मालूम हो कि 16 अप्रैल 2022 को कर्नाटक के पुराने हुबली इलाके में एक आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हिंसा भड़क उठी थी. भीड़ ने पुराना हुबली पुलिस स्टेशन के बाहर प्रदर्शन किया और आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.

बाद में यह प्रदर्शन हिंसक हो गया था, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए और सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा था.  पुलिस ने इस हिंसा को लेकर 155 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया.

सरकार द्वारा मामला वापस लेने का प्रयास

अक्टूबर 2024 में कर्नाटक राज्य सरकार ने 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया, जिसमें हुबली दंगा केस भी शामिल था. यह निर्णय अंजुमन-ए-इस्लाम की याचिका पर गृह मंत्री को दिए गए अनुरोध के बाद लिया गया. सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत विशेष लोक अभियोजक के माध्यम से मामला वापस लेने की अर्जी दायर की.

हाई कोर्ट ने कहा कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी

इस फैसले के खिलाफ एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई. कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. हाई कोर्ट ने साफ किया कि इस प्रकार के मामलों में कानूनी प्रक्रिया का पालन करना और जनहित को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है.

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