कर्नाटक की मौजूद कांग्रेस सरकार ने नए सिरे से 5वीं से लेकर 9वीं क्लास की कुछ किताबों को फिर से छपवाया है, क्योंकि इन किताबों में कई ऐसी जानकारी दी गई थीं, जिसके खिलाफ लगातार आवाजें उठ रही थीं।
भले ही वैज्ञानिक तौर पर हम और आप ये जानते हों कि दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म 25 जुलाई, 1978 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में हुआ था, जिसका नाम लुइस जॉय ब्रोव्ने था और वह एक लड़की थी, लेकिन बीजेपी सरकार जिसने, 2008 से 2013 तक कर्नाटक में सरकार चलाई, उसके शासनकाल के दौरान कर्नाटक में 9वीं क्लास के विज्ञान की किताब के पेज नंबर 208 में यह लिखा गया कि 1978 में 'चिकित्सा' नाम की आयुर्वेद से जुड़ी एक पत्रिका के मुताबिक 7500 साल पहले महाभारत काल के द्रोणाचार्य दुनिया के सबसे पहले टेस्ट ट्यूब बेबी थे।
इसी तरह 5वीं क्लास के समाज विज्ञान की किताब के पेज नंबर 37 पर बताया गया कि इंडस वैली सिविलाइज़ेशन को इंडस सरस्वती सिविलाइज़ेशन भी कहते हैं, क्योंकि इस सभ्यता से जुड़े रहे इसके 1,000 में से 360 बस्तियां सरस्वती नदी के किनारे बसे थे।
ऑल इंडिया सेव एजुकेशन कमिटी के सदसय वीएन राजशेखर के मुताबिक, यह विवाद अब भी चल रहा है कि सरस्वती नदी का वजूद था या नहीं, ऐसे में जो तथ्य प्रामाणिक नहीं हैं, उन्हें बच्चों को कैसे पढ़ाया का सकता है। इन किताबों में ऐसे कई बड़े-छोटे विवादास्पद प्रसंग हैं, जिन्हें लेकर विवाद चलता रहा है।
ऑल इंडिया सेव एजुकेशन समिति की सचिव के उमा के मुताबिक उन्हें यह भी पता चला है कि बीजेपीशासित एक और राज्य में यह भी पढ़ाया जा रहा है कि राइट बंधुओं ने भले ही 20वीं सदी की शुरुआत में हवाई जहाज का आविष्कार किया हो, लेकिन 'पुष्पक विमान' के तौर पर यह तकनीक भारत में पहले से ही मौजूद है।
कर्नाटक के बुनियादी शिक्षा मंत्री के रत्नाकर के मुताबिक उन्हें इन बातों की जानकारी थी, लेकिन टेक्स्ट बुक समिति का गठन तीन सालों के लिए होता है। जिस समिति की अनुशंसा पर स्कूल की किताबों में ऐसे बदलाव लाए गए, उसका कार्यकाल इसी साल 14 अगस्त को खत्म हो गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने नई समिति बनाई है और इस समिति ने किताबों में जरूरी बदलाव किए हैं।
रत्नाकर ने कहा, हालांकि बड़े पैमाने पर बदलाव के साथ अगले सत्र में नई किताबे बच्चों को दी जाएंगी, साथ ही एक सब-कमिटी का भी गठन मैं करने जा रहा हूं, ताकि ये पता लगाया जा सके कि किताबों में जानबूझकर छेड़छाड़ की गई या इसके पीछे कोई और वजह है।
कर्नाटक सरकार के टेक्स्ट बुक का इस्तमाल निजी और सरकारी स्कूलों के लगभग 50 लाख बच्चे करते हैं। ऐसे में एकेडेमिक सेशन के बीच में उनसे किताबों को वापस लेना संभव नहीं है।
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