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वोक्कालिगा Vs अहिंदा: सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच कुर्सी की लड़ाई कैसे जाति-समुदाय तक आई?

Karnataka CM Row: कर्नाटक चुनाव के बाद दो पद मिलने पर भी डीके शिवकुमार की महत्वाकांक्षा कभी कम नहीं हुई. जून में उनके समर्थकों ने सिद्धारमैया को सीएम पद से हटाने की कोशिश की. उन्होंने इतना दबाव बनाया कि कांग्रेस को शांति बनाए रखने के लिए रणदीप सुरजेवाला को बेंगलुरु भेजना पड़ा था.

वोक्कालिगा Vs अहिंदा: सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच कुर्सी की लड़ाई कैसे जाति-समुदाय तक आई?
मठों तक पहुंची कर्नाटक में सीएम पद की लड़ाई.
  • कर्नाटक कांग्रेस में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर संघर्ष जारी है.
  • सिद्धारमैया का समर्थन अहिंदा समुदाय से है जबकि डीके शिवकुमार को वोक्कालिगा समाज और मठ के संतों का समर्थन है.
  • डीके शिवकुमार के समर्थक मुख्यमंत्री पद पर उनके अधिकार के लिए लगातार कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बना रहे हैं.
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कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच सीएम पद की लड़ाई अब जाति और समुदाय तक पहुंच गई है. 2023 के चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद से ही सीएम पद को लेकर दोनों के बीच खींचतान चल रही है. अब ये लड़ाई सामुदायिक बन गई है. सिद्धारमैया किसी भी कीमत पर कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं तो वहीं डीके शिवकुमार ने सीएम बनने के लिए अपने सभी पत्ते खोल दिए हैं. दोनों के बीच की ये लड़ाई दोनों के लिए गले की हड्डी बन गई है.

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कर्नाटक में 'वोक्कालिगा बनाम अहिंदा'

सीएम सिद्धारमैया के आवास पर गुरुवार को हुई एक हाई लेवल बैठक के बाद 'वोक्कालिगा बनाम अहिंदा' राजनीतिक टकराव में बदल गई है. इस बैठक में सीनियर नेता सतीश जरकीहोली और जी परमेश्वर भी शामिल हुए थे. इस ड्रामे में दोनों की अहम भूमिका रही है. अगर सिद्धारमैया या डीके शिवकुमार पीछे नहीं हटते, तो परमेश्वर एक अप्रत्याशित उम्मीदवार बन सकते है. वहीं डीकेएस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर नज़र गड़ाए बैठे जरकीहोली एक रैली का मुद्दा बन सकते हैं.

वोक्कालिगा मठ के संत ने किया शिवकुमार का समर्थन

डीके शिवकुमार के समर्थन में 'वोक्कालिगा समाज से जुड़े एक मठ के संत की एंट्री हो गई है. वोक्कालिगा संत निर्मलानंदनाथ स्वामीजी ने बुधवार को कहा कि यह उनका व्यक्तिगत विचार और समुदाय की भावना है कि कांग्रेस नेता एवं उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार को कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री बनना चाहिए. आदिचुंचुनागिरी मठ के मठाधीश ने शिवकुमार की पार्टी के प्रति निष्ठा और लंबी सेवा का हवाला देते हुए विश्वास व्यक्त किया कि कांग्रेस आलाकमान उचित निर्णय लेगा.

शिवकुमार के समर्थकों ने 'वफादारी' और 'कांग्रेस के प्रति लंबी सेवा' का मुद्दा उठाया. वे सभी सिद्धारमैया की जगह पर अपने नेता को सीएम बनाए जाने का दबाव आलाकमान पर बना रहे हैं.

क्या कह रहे सिद्धारमैया समर्थन?

वहीं सिद्धारमैया गुट का मानना है कि इस समर्थन ने एक प्रभावशाली समुदाय वोक्कालिगा और लिंगायत के बारे में उनकी धारणा को और मजबूत कर दिया है. बता दें कि दोनों ही कर्नाटक के सबसे बड़े जाति समूह हैं. दरअसल बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से ही आते हैं. इस समर्थन से वोक्कालिगा बनाम अहिंदा के बीच युद्ध का मैदान तैयार हो गया है.

अहिंदा समुदाय सिद्धारमैया केस समर्थन में

अहिंदा समुदाय मल्टी ग्रुप वोट बेस वाला है, इसमें अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग और दलित शामिल हैं, ये लोग लगातार सिद्धारमैया का समर्थन करते रहे हैं. इनकी वजह से ही सिद्धारमैया को 'जन नेता' का खिताब मिला और उनको वोक्कालिगा-लिंगायत विभाजन को दरकिनार करने का मौका मिला है. कांग्रेस के पास सिद्धारमैया का समर्थन करने की ये एक बहुत बड़ी वजह है. दक्षिणी राज्यों में वे इस समुदाय का वोट बैंक हासिल करने की वजह से ही वह कांग्रेस के लिए अहम बने हुए हैं.

डीकेएस की उम्मीदों पर फिरा पानी, इसीलिए बगावत?

दूसरी तरफ डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. 2023 में जेडीएस के वोटों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस को दिलाने का क्रेडिट उनको ही जाता है. उस जीत के बाद, डीकेएस को उम्मीद थी कि अगले सीएम वे ही बनेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्यों कि अहिंदा समुदाय के ज्यादातर निर्वाचित विधायक सिद्धारमैया को सीएम देखना चाहते थे.

कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं बचा था. उनको सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा औ शिव कुमार को डिप्टी सीएम पद और कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर संतोष करना पड़ा. हालांकि ये एक ऐसी दोहरी ज़िम्मेदारी है जो आमतौर पर राहुल गांधी के 2022 के 'एक व्यक्ति, एक पद' के फरमान के बाद किसी को नहीं दी जाती है.

क्या चहता है डीके शिवकुमार गुट?

दो पद मिलने के बाद भी शिवकुमार की महत्वाकांक्षा कभी कम नहीं हुई. जून में उनके समर्थकों ने सिद्धारमैया को सीएम पद से हटाने की कोशिश की. उन्होंने इतना दबाव बनाया कि कांग्रेस को शांति बनाए रखने के लिए रणदीप सुरजेवाला को बेंगलुरु भेजना पड़ा.ऐसा ही 2023 के चुनाव के बाद भी किया गया था. डीके शिवकुमार का खेमा इस महीने फिर से सीएम पद के लिए दबाव बना रहा है. इस बार समर्थक चाहते थे कि सिद्धारमैया ढाई साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद पद छोड़ दें. पिछले हफ्ते ही उनके ढाई साल पूरे हो गए लेकिन उन्होंने पद नहीं छोड़ा. जिसकी वजह से डीकेएस ने इस हफ़्ते वादों को पूरा करने की बात कही.

डीके शिवकुमार का गुट अब तक आक्रामक रहा है. उनके गुट ने के रामनगर विधायक इकबाल हुसैन ने पिछले हफ्ते एनडीटीवी से कहा था कि उन्हें "200 प्रतिशत यकीन" है कि डीकेएस जीतेंगे और नए सीएम बनेंगे.

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