सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की चार सदस्यीय किशोर न्याय समिति को राज्य में अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान रद्द करने के निर्णय के बाद सुरक्षा बलों द्वारा नाबालिगों को हिरासत में रखने के आरोपों की नये सिरे से जांच का आदेश दिया है. न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने किशोर न्याय समिति से कहा कि वह अपनी रिपोर्ट यथाशीघ्र पेश करे. पीठ ने इसके साथ ही इस मामले को तीन दिसबंर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया है. पीठ ने कहा कि इन आरोपों की नये सिरे से जांच की आवश्यकता है क्योंकि समिति की पहले की रिपोर्ट समयाभाव की वजह से शीर्ष अदालत के आदेश के अनुरूप नहीं थी. शीर्ष अदालत कश्मीर घाटी में गैरकानूनी तरीके से नाबालिगों को कथित रूप से हिरासत में लिये जाने का मुद्दा उठाने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
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बाल अधिकार कार्यकर्ताओं और जम्मू कश्मीर प्रशासन के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि समिति को सौंपा गया काम समयाभाव की वजह से शीर्ष अदालत के आदेश की भावना के अनुरूप नहीं किया गया. पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत का 20 सितंबर का आदेश समिति के पास 23 सितंबर को पहुंचा था और दो दिन बाद जम्मू कश्मीर पुलिस के महानिदेशक ने मीडिया और याचिका में इस बारे में किये गये दावों और आरोपों का 25 सितंबर को सिरे से खंडन किया. समिति की रिपोर्ट में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के निष्कर्ष भी शामिल थे जिसमे कश्मीर मे गैरकानूनी तरीके से किशोरों को हिरासत में रखने के आरोपों से इंकार किया गया था.
समिति ने शीर्ष अदालत से कहा था कि केन्द्र द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद राज्य में 144 किशोर हिरासत मे लिये गये थे लेकिन इनमें से 142 को बाद में रिहा कर दिया गया था. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि शेष दो नाबालिगों को किशोर सुधार गृह में भेज दिया गया था. यह मामला एक अक्टूबर को जब सुनवाई के लिये आया था तो बाल अधिकार कार्यकर्ता इनाक्षी गांगुली और शांता सिन्हा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा था कि वह इस रिपोर्ट पर अपना जवाब दाखिल करना चाहेंगे. अहमदी मंगलवार को जब अपनी दलीलें पेश कर रहे थे तो इसी दौरान पीठ ने समिति के सदस्यों के बारे में प्रयुक्त आपत्तिजनक भाषा की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया और कहा कि इन्हें वापस लेना होगा.
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अहमदी ने इस सुझाव से सहमति व्यक्त करते हुये कहा कि वह एक हलफनामा दाखिल करके इन्हें वापस ले लेंगे. पीठ ने कहा कि चार सदस्यीय समिति के सदस्य न्यायाधीश हैं और उनके बारे में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल स्वीकार नहीं किया जा सकता. पीठ ने कहा कि समिति की अपनी सीमायें हैं और शायद सदस्यों के पास समय की भी कमी थी. पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता को याद दिलाया कि जब पहली बार यह मामला सुनवाई के लिये आया था तो याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि उच्च न्यायालय में न्याय के लिये नहीं पहुंचा जा सकता. इस पर प्रधान न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय से रिपोर्ट मांगी थी. इस मामले की सुनवाई के दौरान मौजूद अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से पीठ ने किशोर न्याय समिति की रिपोर्ट के बारे में पूछा.
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वेणुगोपाल ने कहा कि इस मामले में जम्मू कश्मीर प्रशासन के साथ केन्द्र भी प्रतिवादी है और उसका दृष्टिकोण प्रशासन वाला ही है. सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया लेकिन पीठ ने कहा कि इस तरह के महत्वपूर्ण मामले में विलंब नहीं किया जा सकता. मेहता का कहना था कि याचिकाकर्ता कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं और उन्हें शीर्ष अदालत की बजाये उच्च न्यायालय में याचिका दायर करनी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत में पहले यह झूठा दावा किया था कि उच्च न्यायालय काम नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा कि इस याचिका को लंबित नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि उच्च न्यायालय राहत के लिये उपलब्ध है और किशोर न्याय समिति काम कर रही है.
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