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जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने का मामला, RTI के तहत जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करने से SC का इनकार

सूचना अधिकारी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल फैसले को देखते हुए ये सूचना प्रदान नहीं की जा सकती

जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने का मामला, RTI के तहत जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करने से SC का इनकार
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी मिलने के मामले में गठित इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को भेजी गई चिट्ठी की कॉपी को सूचना के अधिकार (RTI) के तहत सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (CPIO) ने अमृतपाल सिंह खालसा के RTI आवेदन को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया.

CPIO ने 21 मई को दिए अपने जवाब में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर 2019 के फैसले (सिविल अपील संख्या 10044-45/2010, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल) के आधार पर यह जानकारी नहीं दी जा सकती. इसके लिए RTI एक्ट की धारा 8(1)(ई) और धारा 11 का हवाला दिया गया, जो प्रत्ययी संबंधों और तीसरे पक्ष की सूचना के खुलासे पर रोक लगाती हैं, जब तक कि व्यापक जनहित में खुलासा उचित न ठहराया जाए. CPIO ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निजता के अधिकार, आनुपातिकता परीक्षण और गोपनीयता के कर्तव्य जैसे आधारों को भी इस निर्णय का कारण बताया.

मामला क्या है?

यह विवाद 14 मार्च 2025 को उस समय शुरू हुआ, जब जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास के आउटहाउस के स्टोर-रूम में आग लग गई. आग बुझाने के दौरान अग्निशमन कर्मियों को वहां से भारी मात्रा में नकदी मिलने की जानकारी सामने आई. उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे. इस घटना के बाद उत्पन्न विवाद के कारण जस्टिस वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट, स्थानांतरित कर दिया गया. साथ ही, CJI के निर्देश पर उनके न्यायिक कार्य भी वापस ले लिए गए.

इन-हाउस जांच समिति का गठन

तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच के लिए 22 मार्च 2025 को तीन सदस्यीय इन-हाउस समिति का गठन किया, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस सिधरावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं. इस समिति की रिपोर्ट को CJI ने 8 मई को आगे की कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा था.

सार्वजनिक की गई प्रारंभिक जानकारी

हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की प्रारंभिक रिपोर्ट, जस्टिस वर्मा का जवाब, और दिल्ली पुलिस द्वारा लिए गए फोटो व वीडियो को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर सार्वजनिक किया गया, लेकिन अंतिम जांच रिपोर्ट को गोपनीय रखा गया है.

RTI आवेदन खारिज

RTI कार्यकर्ता अमृतपाल सिंह खालसा ने इस मामले में जांच रिपोर्ट और संबंधित पत्राचार की कॉपी मांगी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह जानकारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गोपनीयता के सिद्धांतों के खिलाफ है. इस फैसले ने एक बार फिर इस मामले को सुर्खियों में ला दिया है, और यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या व्यापक जनहित में इस तरह की सूचनाओं का खुलासा जरूरी है. यह मामला न केवल न्यायपालिका की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि RTI एक्ट के दायरे और सीमाओं पर भी बहस को जन्म देता है.

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