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This Article is From Oct 23, 2019

भूमि अधिग्रहण कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई से अलग नहीं होंगे जस्टिस अरुण मिश्रा

सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों की सुनवाई कर रही संविधान पीठ से जज मिश्रा को हटाने की मांग को ‘पीठ का शिकार’ करना बताया था.

भूमि अधिग्रहण कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई से अलग नहीं होंगे जस्टिस अरुण मिश्रा
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस अरुण मिश्रा पर सुनाया फैसला
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा भूमि अधिग्रहण कानून के तहत उचित मुआवजा, पारदर्शिता और संबंधित मामलों की सुनवाई आगे भी जारी रखेंगे. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने यह फैसला दिया. इस मामले की पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों की सुनवाई कर रही संविधान पीठ से जज मिश्रा को हटाने की मांग को ‘पीठ का शिकार' करना बताया था. शीर्ष अदालत ने उस दौरान कहा था कि यदि इसकी इजाजत दी गई, तो ‘संस्थान नष्ट' हो जाएगा. बता दें कि जस्टिस मिश्रा को सुनवाई से अलग करने की मांग याचिकाकर्ताओं ने की थी. उनका कहना था कि चुकि जस्टिस मिश्रा 2018 के फैसले में शामिल थे इसलिए उन्हें इस सुनवाई से अलग रखना चाहिए.

भूमि अधिग्रहण मामलों की जल्द सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन की मांग

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि जस्टिस अरुण मिश्रा को पांच जजों की संविधान पीठ से हटाया गया, तो यह इतिहास में एक काला अध्याय होगा. यह न्यायपालिका पर हमले जैसे है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने किसान संगठनों के वकील श्याम दीवान से कहा कि सुनवाई से जस्टिस मिश्रा को हटाने की मांग करना गलत है. क्या आप पांच जजों की पीठ में अपनी पसंद का व्यक्ति चाहते हैं.  यह एक गंभीर मसला है और इतिहास कहेगा कि एक वरिष्ठ वकील भी इस प्रयास में शामिल था. कोर्ट के इस सवाल पर दीवान ने कहा कि एक जज को पूर्वाग्रह की आशंका को देखते हुए सुनवाई से हट जाना चाहिए. ऐसा न होने पर जनता का भरोसा उठ जाएगा और इसलिए वह संस्थान की इमानदारी को बरकरार रखने के लिए जज को हटाने का निवेदन कर रहे हैं.

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दीवान और अन्य वकीलों ने कहा कि जस्टिस मिश्रा को इस केस से खुद को अलग कर लेना चाहिए, क्योंकि पिछले साल सुनाए गए फैसले का वह हिस्सा थे. उस फैसले में उन्होंने अपने मन की बात कही थी. वहीं, सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्रा ने पाया कि उनको पीठ से हटाने की याचिका प्रायोजित है. उन्होंने कहा कि यदि हम ऐसे प्रयासों के आगे झुक गए तो यह इतिहास में सबसे काला अध्याय होगा. ये ताकतें कोर्ट को किसी खास तरीके से चलाना चाहती हैं. इस संस्थान के साथ जो कुछ हो रहा है वह हैरान करने वाला है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ को इस संबंध में 2014 और 2018 में सुप्रीम कोर्ट की अलग- अलग बेंच के दिए फैसलों पर विचार करना है. 2018 के फैसले में जस्टिस अरुण मिश्रा शामिल थे इसलिए याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्हें इस बेंच में शामिल नहीं होना चाहिए. 

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