क्या जम्मू-कश्मीर में इस साल हो पाएंगे विधानसभा चुनाव? अधिकारियों ने कही यह बात

अगस्त 2019 में केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की टाइमलाइन से जुड़ा संकेत दिया था. उन्होंने कहा था कि इस साल के अंत तक चुनाव प्रक्रिया शुरू होने की मजबूत संभावना है. 

क्या जम्मू-कश्मीर में इस साल हो पाएंगे विधानसभा चुनाव? अधिकारियों ने कही यह बात

जम्मू-कश्मीर चुनाव को लेकर ये अपडेट आया सामने....

उम्मीद की जा रही थी कि जम्मू-कश्मीर में बहुप्रतीक्षित विधानसभा चुनाव इस साल के अंत तक होंगे, लेकिन अब इसमें बाधा पड़ती दिख रही है. संसद में केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि पहले मतदाता सूची में संशोधन का काम होगा. दरअसल, इसके बाद ही गृहमंत्रालय के अधिकारियों ने भी संकेत दिया है कि मतदाता सूची में संशोधन के काम के दौरान राजनीतिक गतिरोध होना स्वाभाविक दिख रहा है और इस काम के सर्दियों से पहले पूरा होने की उम्मीद नहीं है. अधिकारियों ने कहा कि कश्मीर में 40 दिनों की कड़ाके की ठंड "चिल्लई कलां" को देखते हुए अगले साल बर्फ पिघलने से पहले चुनाव नहीं हो सकते हैं. 

अगस्त 2019 में केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की टाइमलाइन से जुड़ा संकेत दिया था. उन्होंने कहा था कि इस साल के अंत तक चुनाव प्रक्रिया शुरू होने की मजबूत संभावना है. 

इससे पहले केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा को बताया कि "सरकार ने एक परिसीमन आयोग का गठन किया, जिसने जम्मू-कश्मीर के संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन पर 14 मार्च, 2022 और 5 मई, 2022 को आदेश अधिसूचित किए. इसके बाद चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में संशोधन शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि चुनाव कराने का फैसला चुनाव आयोग का विशेषाधिकार है.

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के प्रकाशन के लिए 31 अक्टूबर तक का समय दिया है. लेकिन इसके प्रकाशित होने के बाद "राजनीतिक दल स्वाभाविक रूप से दावों का विरोध करेंगे इसलिए इसमें और समय लगेगा और मामला सर्दियों के आगे तक धकेल दिया जाएगा. अधिकारियों ने कहा कि कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर हाल ही में टार्गेट करके नागरिकों की हत्याएं और आईएसआईएस का जिम्मेदारी लेना एक नई चुनौती है. 

2019 के विधानसभा चुनावों में भी सुरक्षा की स्थिति प्रमुख रोड़ा थी. जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा इस पर अपनी चिंता व्यक्त करने के बाद ही चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों को आम चुनावों के साथ जोड़ने से इनकार कर दिया था. राज्य में 2018 से ही राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है.

इस बार पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर के शरणार्थियों में से सदस्य मनोनित करने के मुद्दे को भी हल किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है. परिसीमन आयोग ने पीओजेके (पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर) शरणार्थियों के लिए नामांकन की सिफारिश की है, लेकिन किसी संख्या का उल्लेख नहीं किया है. आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि दो कश्मीरी प्रवासियों जिनमें एक महिला हो मतदान के अधिकार के साथ विधानसभा के लिए नामित किया जा सकता है.

अधिकारियों ने कहा कि इस मुद्दे को अंततः चल रहे मॉनसून सत्र में बिल या कार्यकारी आदेश के रूप में संसद में सुलझाया जा सकता है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार के भीतर कई दौर की चर्चा हो चुकी है. उन्होंने कहा कि पूरी तरह से पीओजेके से विस्थापित व्यक्तियों को तीन या चार नामांकन इस आधार पर दिए जा सकते हैं कि विधानसभा में उनके लिए 24 निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित किए गए हैं और 1947 में लगभग एक तिहाई आबादी यहां से पलायन कर गई थी. इस बीच चुनावी मशीनरी को पटरी पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और वीवीपीएटी की फर्स्ट स्टेज की जांच इस महीने के अंत तक होने वाली है.  यह एक वर्कशॉप है जहां ईवीएम की जांच की जाती है और जमीनी स्तर पर अधिकारियों को उनके कामकाज से परिचित कराया जाता है."  वर्कशॉप में कश्मीर घाटी के सभी 10 जिलों के उपायुक्त और भारत निर्वाचन आयोग की एक टीम भाग लेंगी.

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