जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने 18 वर्ष पहले एक ‘निर्दोष' व्यक्ति की हत्या कर उसे ‘आतंकवादी' करार देने के आरोप में गिरफ्तार किए गए पुलिसकर्मी को जमानत दे दी. न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन ने तीन जुलाई को दिये अपने आदेश में कहा, “मामले की सुनवाई काफी समय से लंबित रहना अनुच्छेद 21 के उल्लंघन का स्पष्ट मामला है.”
वकील ने अदालत को बताया कि इस मामले में उन्हें कभी राहत नहीं प्रदान की गई, सिवाय कुछ महीनों के जब वे अंतरिम जमानत पर बाहर थे.
न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, “इस मामले में कुल 72 गवाह हैं, जिनमें से पिछले 17 वर्ष में केवल 28 से ही पूछताछ की गई है. यह अदालत इस मामले के तथ्यों से चकित है.”
अदालत इन परिस्थितियों में याचिकाकर्ता को 50 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत देने पर तुरंत रिहा करने का आदेश देती है.
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