सुप्रीम कोर्ट से जल्लीकट्टू को इजाजत, सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा माना

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने घोषणा की है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, तो न्यायपालिका अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है. विधायिका यह तय करने के लिए सबसे उपयुक्त है

तमिलनाडु मे जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक में कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को अनुमति दिए जाने के मामले मे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अहम फैसला. कोर्ट ने माना जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक गतिविधि है, इसलिए इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु मे जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक में कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को सांस्कृतिक विरासत माना है.  तमिलनाडु द्वारा किया गया संशोधन अनुच्छेद 15 A का उल्लंघन नहीं करता. इस खेल को लेकर जो नियम बनाए गए हैं उसे प्रशासन सख्ती से लागू करे. अगर पशुओं के खिलाफ क्रूरता कानून का उल्लंघन हो तो कार्रवाई की जाए.

कोर्ट ने ये भी कहा कि जल्लीकट्टू  तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है या नहीं यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है. जब विधायिका ने घोषणा की है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, तो न्यायपालिका अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है. विधायिका यह तय करने के लिए सबसे उपयुक्त है. बेंच ने नागराज में 2014 के फैसले से असहमति जताई कि जल्लीकट्टू सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं है.

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 जल्लीकट्टू के खिलाफ दाखिल याचिकाओं का खारिज किया गया है. याचिकाकर्ताओं ने इन खेलों की अनुमति देने वाले राज्यों के क़ानूनों की वैधता को चुनौती दी थी. उनके मुताबिक- इन खेलों में पशुओं के साथ क्रूरता होती है. संविधान पीठ को ये तय करना था कि  क्या राज्यों के पास इस तरह के कानून बनाने के लिए "विधायी क्षमता" है, जिसमें जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ अनुच्छेद 29 (1) के तहत सांस्कृतिक अधिकारों के तहत आते हैं और संवैधानिक रूप से संरक्षित किए जा सकते हैं.  दरअसल, 2014 मे सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था लेकिन राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संशोधन कर दिया था.