
भारत में 16 अप्रैल, 1853 का दिन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. इसी दिन भारत की पहली रेलगाड़ी ने मुंबई के बोरी बंदर से ठाणे तक चली थी. इस ऐतिहासिक घटना को अक्सर ब्रिटिश शासन की देन माना जाता है, लेकिन इसके पीछे एक भारतीय दूरदर्शी का अथक प्रयास और सपना छिपा था. जिनका नाम है जगन्नाथ शंकर शेट, जिन्हें प्यार से 'नाना शंकर शेट' कहा जाता है.
नाना का सबसे बड़ा योगदान भारत में रेलवे की शुरुआत को लेकर रहा. 1830 में जब इंग्लैंड के लिवरपूल-मैनचेस्टर रेलमार्ग की खबर नाना तक पहुंची, तो उनके मन में मुंबई में भी ऐसी सुविधा लाने का विचार जागा. उस समय ब्रिटिश सरकार भारत में रेलवे शुरू करने के लिए उत्सुक नहीं थी, क्योंकि इसमें भारी निवेश और जोखिम था. लेकिन नाना ने इस सपने को हकीकत में बदलने का बीड़ा उठाया. उन्होंने मुंबई के व्यापारी समुदाय को एकजुट किया और ब्रिटिश उद्योगपतियों से बातचीत शुरू की. 1843 में उन्होंने अपने पिता के मित्र सर जमशेदजी जीजीभाय और जस्टिस सर थॉमस एर्स्किन पेरी के साथ मिलकर रेलवे की योजना को ठोस रूप दिया.
नाना की मेहनत रंग लाई और 1853 में भारत की पहली रेलगाड़ी पटरी पर दौड़ी. इस ऐतिहासिक यात्रा में नाना और जमशेदजी जीजीभाय खुद सवार थे. ट्रेन को फूलों से सजाया गया था और इसमें 18 डिब्बे और तीन लोकोमोटिव इंजन थे. इस परियोजना के लिए 10,000 लोगों ने काम किया और इसे पूरा करने में भारी खर्च आया. नाना ने न सिर्फ आर्थिक सहायता दी, बल्कि निर्माण कार्य पर भी बारीकी से नजर रखी. मार्च 2020 में महाराष्ट्र सरकार ने 'मुंबई सेंट्रल' स्टेशन का नाम बदलकर 'नाना शंकर शेट टर्मिनस' करने का प्रस्ताव पारित किया, जो उनके योगदान को सम्मान देने का एक प्रयास था.
नाना शंकर शेट एक व्यापारी थे लेकिन एक समाज सुधारक की तरह वो कार्य करते थे. उन्होंने मुंबई के विकास में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए. उन्होंने 'बॉम्बे नेटिव्ह एज्युकेशन सोसायटी' की स्थापना में हिस्सा लिया, जो पश्चिम भारत की पहली शिक्षण संस्था थी. इसके अलावा, एलफिन्स्टन कॉलेज, ग्रांट मेडिकल कॉलेज, जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स और बंबई विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की स्थापना में उनका बड़ा हाथ था. नाना ने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मुंबई में पहला कन्या विद्यालय भी शुरू किया.
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