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This Article is From Aug 30, 2023

Chandrayaan-3 के बाद भारत को अब स्पेस टेक्नोलॉजी बढ़ाने के लिए मजबूत विजन की जरूरत- एक्सपर्ट्स

एक्सपर्ट का मानना ​​है कि चंद्रमा पर उतरने के बाद प्राइवेट स्पेस रिसर्च प्रोग्राम को बढ़ावा मिलने से भारत की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा.

Chandrayaan-3 के बाद भारत को अब स्पेस टेक्नोलॉजी बढ़ाने के लिए मजबूत विजन की जरूरत- एक्सपर्ट्स
चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त को चांद के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग की थी.
नई दिल्ली:

भारत अपने पहली रॉकेट लॉन्चिंग के करीब 6 दशक बाद चंद्रयान-3 मिशन (India's Chandrayaan-3 Mission) की सफलता के साथ दुनिया में स्पेस पावर (Space Power) बनकर उभरा है. भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) की वजह से भारत अब स्पेस रिसर्च और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मजबूत स्थिति में है. चंद्रयान-3 की सफलता के बीच अब एक्सपर्ट का कहना है कि वो समय आ गया है कि देश स्पेस पॉलिसी पर एक राष्ट्रीय रणनीतिक दृष्टिकोण लेकर आए. ऐसा नजरिया जो स्पेस टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दे. स्पेस इकोनॉमी (Space Economy) को आगे लेकर जाए और अपने जियो-पॉलिटिकल फायदे को दोगुना-चौगुना करे.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का स्थायी सदस्य बनने का भारत का लक्ष्य अभी भी अधूरा है, लेकिन भारत अब उन देशों के एलीट ग्रुप में शामिल हो गया है, जिनके स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर चुके हैं. भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश है. भारत से पहले अमेरिका, यूएसएसआर और चीन ऐसा कर चुके हैं. वहीं, चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का एकमात्र देश है. जबकि इज़राइल, जापान, रूस और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) सहित कई देश चांद के साउथ पोल पर उतरने में नाकाम रहे हैं. 

चंद्रयान 3 मिशन की कामयाबी दुनिया को एक मैसेज
अमेरिका में एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी की थंडरबर्ड स्कूल ऑफ ग्लोबल मैनेजमेंट में स्पेस पॉलिसी की प्रोफेसर नम्रता गोस्वामी ने NDTV से इस बारे में बात की. उन्होंने बताया कि भारत के चंद्रयान 3 मिशन की कामयाबी दुनिया को एक मैसेज देती है कि भारत एक स्पेस पावर के तौर पर मैच्योर हो चुका है. स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत के आत्मनिर्भर होने के साथ ही ये धारणा भी बदल चुकी है कि भारत के लिए रूस तथाकथित मददगार था.

प्रोफेसर नम्रता गोस्वामी ने इस तथ्य पर जोर देते हुए कहा कि स्पेस किसी राष्ट्र की रणनीतिक धारणा को बढ़ाने के साथ-साथ उसकी शक्ति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उन्होंने कहा कि भारत ने अपने मून मिशन में सफल होकर भारतीय स्पेस टेक्नोलॉजी की मैच्योरिटी और मेक इन इंडिया क्षमता को दिखाया है. हालांकि, भारत अभी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी) और स्पेस टेक्नोलॉजी पॉलिसी में पीछे है. लेकिन चंद्रयान-3 से साफ पता चलता है कि स्पेस कैसे भारत की रणनीतिक दृष्टि का हिस्सा है.

प्रोफेसर नम्रता गोस्वामी ने कहा, "ऐसी रणनीति के बिना टेक्नोलॉजी प्रदर्शन में रणनीतिक दृष्टि और फोकस की कमी हो सकती है." उन्होंने कहा कि भारत के चंद्रमा मिशन की सफलता ने दुनिया को साबित कर दिया है कि देश के पास अब मेक इन इंडिया स्पेस क्षमता है. चांद पर लैंडिंग और इसपर रोवर उतारने जैसी टेक्नोलॉजी के मामले में भारत ने चीन की बराबरी कर ली है. गोस्वामी ने कहा, "चीन अपनी ऑटोनॉमस सैंपल की वापसी के मामले में आगे है. चीन का स्पेसक्राफ्ट 2020 में चंद्रमा से सैंपल लेकर पृथ्वी पर लौटा था. जबकि चांग'ई 5 ने सूरज के लैग्रेंज प्वाइंट 1 पर गया था, जो स्पेस टेक्नोलॉजी का एक अनोखा प्रदर्शन था."

स्पेस साइंस में उल्लेखनीय तरक्की
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एयरोनॉटिक्स और एस्ट्रोनॉटिक्स डिपार्टमेंट के पूर्व नासा एम्स सेंटर डायरेक्टर जी. स्कॉट हबर्ड ने कहा कि स्पेस रिसर्च में अहम उपलब्धियां किसी भी राष्ट्र के लिए उपलब्धि का एक बड़ा प्रतीक हैं. उन्होंने कहा, "मंगल ग्रह पर मंगलयान (MOM) और अब चंद्रमा पर चंद्रयान की सफलता के साथ भारत स्पेस साइंस में उल्लेखनीय तरक्की दिखा रहा है."

प्रोफेसर गोस्वामी ने बताया कि पृथ्वी और चंद्रमा के बीच का स्थान (सिस्लुनार) महान शक्ति प्रतिस्पर्धा का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र है. चीन अपने मिशन मून के तहत स्पेसक्राफ्ट वापस लाने के लिए अगले साल चांद के साउथ पोल पर चांग'ई 6 भेजने पर फोकस कर रहा है. उन्होंने कहा कि चीन और रूस 2036 तक चंद्रमा पर एक रिसर्च सेंटर स्थापित करने की योजना बना रहे हैं. भारत अब चांद के साउथ पोल पर सफलतापूर्वक उतर रहा है, ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल चंद्रमा पर आगामी लोकतांत्रिक मिशनों के लिए किया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता के बड़े मायने हैं. प्रोफेसर गोस्वामी के मुताबिक, "यह चीन और अब रूस जैसे देशों को दिखाता है कि भारत ऑटोनॉमस स्पेसक्राफ्टी की सफल लैंडिंग कराकर, रोवर को चांद पर उतारकर और अब एल्यूमीनियम जैसे एलिमेंट्स करके सिस्लुनर (पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की जगह) टेकनीक में आगे बढ़ रहा है. रोवर ने चांद के साउथ पोल पर मैग्नीशियम, टाइटेनियम, सिलिकॉन, लौह अयस्क और बर्फ के सबूत भी जुटाए हैं. ये स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत की एक ऊंची छलांग है.

भारत के लिए जियो-पॉलिटिकल फायदा
प्रोफेसर नम्रता गोस्वामी ने कहा कि भारत के चंद्रमा मिशन की सफलता से ब्रिक्स देशों के मुकाबले भारत की सौदेबाजी की स्थिति में सुधार होग. इसमें खास तौर पर चीन और रूस का नाम ले सकते हैं. उन्होंने कहा, "जहां तक ​​जी-20 समिट का सवाल है, इस तरह की स्पेस टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन इनोवेशन के लिए रास्ता तैयार करता है. गौर करने वाली बात ये भी है कि भारत ने इसे मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत किया है, जो स्पेस टेक्नोलॉजी को लेकर इसके जुझारूपन को दर्शाता है."

चांद के साउथ पोल पर पानी का सबूत मिलना बड़ी बात है. इसे भविष्य में रॉकेट फ्यूल में रिफाइंड किया जा सकता है. ये खोज बाकी देशों के लिए चंद्रमा के साउथ पोल को गहरे स्पेस रिसर्च के आधार के रूप में इस्तेमाल करने का मौका भी सुझाती है. 

अब आगे का रास्ता
एक्सपर्ट का मानना ​​है कि चंद्रमा पर उतरने के बाद प्राइवेट स्पेस रिसर्च प्रोग्राम को बढ़ावा मिलने से भारत की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा. प्रोफेसर गोस्वामी ने कहा, "खासकर तब जब भारत ने पूरे स्पेस इकोसिस्टम को प्राइवेटाइजेशन के लिए आगे बढ़ाने का फैसला किया है. आप इसे 2023 की स्पेस पॉलिसी के साथ देख सकते हैं, जिसके तहत प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को स्पेस सिस्टम के निर्माण का काम सौंपा जाएगा."

23 अगस्त को चंद्रयान-3 मिशन की सफलता से प्राइवेट स्पेस लॉन्चिंग और इससे जुड़े सैटेलाइट आधारित बिजनेस में निवेश को बढ़ावा देकर केंद्र के महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया प्रोग्राम को बढ़ावा मिलने की संभावना है. भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों में तेजी आई है. अप्रैल में सरकार ने एक ऐतिहासिक स्पेस पॉलिसी का ऐलान किया, जो प्राइवेट सेक्टर को कई स्पेस एक्टिविटी तक पहुंच की अनुमति देती है.

डॉ. हबर्ड ने कहा कि अमेरिका में कॉमर्शियल एविएशन स्पेस से भी बड़ा मार्केट है. स्पेस मार्केट हर साल बढ़ता जा रहा है. उन्होंने कहा, "स्पेसएक्स, ब्लू ओरिजिन और अन्य छोटे स्टार्टअप की सफलता से पता चलता है कि ऐसे स्पेस बिजनेस विकसित हो रहे हैं. अगर भारत के पास तीन तत्व हैं, तो वह इसमें शामिल हो सकता है-: 1) हाई नेट वर्थ वाले उद्यमी; 2) हाईली ट्रेंड एयरोस्पेस इंजीनियर और 3) एक बिजनेस इकोसिस्टम, जो इस तरह के जोखिम लेने को प्रोत्साहित करता हो. यह कोई संयोग नहीं है कि स्पेसएक्स की स्थापना सिलिकॉन वैली में हुई थी और ब्लू ओरिजिन सिएटल में स्थित है."

स्पेस में एक नई दौड़
कुछ लोगों का यह भी मानना ​​है कि चंद्रयान के बाद स्पेस सेक्टर के देशों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और मजबूत हो सकती है. प्रोफेसर गोस्वामी ने कहा, "आप अमेरिका के मसौदे के साथ अंतरिक्ष के जियो-पॉलिटिकल एंगल को देख सकते हैं. अब भारत ने आर्टेमिस डील पर साइन कर दिए हैं. चीन ने इसका नेतृत्व किया. रूस ने इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन पर साइन किए. 2024 में चीन ने चांद के साउथ पोल पर स्पेसक्राफ्ट भेजने और उसे वापस लाने की योजना बनाई है. 2028 तक दक्षिणी ध्रुव सर्वेक्षण मिशन होगा. वहीं, 2030 में चीनी टैकोनॉट्स का चंद्रमा पर उतरने और 2036 तक चीन रूस और वेनेजुएला के सहयोग से एक रिसर्च सेंटर का निर्माण कर रहा है. पाकिस्तान भी चीन के साथ शामिल होने में रुचि दिखा रहा है. यह प्रतियोगिता इस आधार पर होगी कि चंद्रमा की सतह पर किसके पास स्थायी उपस्थिति है."

हालांकि, डॉ. हबर्ड ने कहा कि लोग अक्सर चंद्रमा और मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजने के लिए चीनी-अमेरिकी अंतरिक्ष दौड़ के बारे में बात करते हैं. नासा ने अमेरिकी संसद में इसका जिक्र किया है. लेकिन चीजें अभी भी 1960 के अपोलो युग की अमेरिकी-सोवियत अंतरिक्ष दौड़ जितनी स्पष्ट नहीं लगती हैं."

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