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This Article is From Jun 23, 2021

टलेगा उत्तराखंड का संवैधानिक संकट? गेंद चुनाव आयोग के पाले में 

विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151ए के तहत अब राज्य में उपचुनाव नहीं हो सकता क्योंकि विधानसभा का कार्यकाल एक साल से भी कम बचा है.

टलेगा उत्तराखंड का संवैधानिक संकट? गेंद चुनाव आयोग के पाले में 
Uttarakhand CM Tirath Singh Rawat को 6 माह में बनना था विधायक
नई दिल्ली:

क्या उत्तराखंड एक संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि राज्य के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को दस सितंबर 2021 तक विधानसभा का सदस्य बनना अनिवार्य है. ऐसा नहीं होने पर राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है. संविधान के अनुच्छेद 164(4) के तहत किसी भी मंत्री को छह महीने के भीतर सदन का सदस्य बनना आवश्यक है. विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151ए के तहत अब राज्य में उपचुनाव नहीं हो सकता क्योंकि विधानसभा का कार्यकाल एक साल से भी कम बचा है.

इस धारा में प्रावधान है कि लोकसभा या विधानसभा की कोई सीट खाली होने पर चुनाव आयोग को छह महीने के भीतर चुनाव कराना चाहिए. लेकिन छह महीने के भीतर यह उपचुनाव तब न हो अगर विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम बचा हो. उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 23 मार्च को समाप्त हो रहा है। इसीलिए कांग्रेस इस नियम का हवाला देकर संवैधानिक संकट खड़ा होने की बात कर रही है।  

तीरथ सिंह रावत इस साल मार्च में मुख्यमंत्री बनाए गए थे। इस लिहाज से उनके छह महीने दस सितंबर 2021 को पूरे हो रहे हैं। राज्य में अभी दो विधानसभा सीटें खाली हैं- गंगौत्री और हल्द्वानी। इस लिहाज से उनके पास विधानसभा सदस्य बनने का यही रास्ता है कि वे इन दो में से किसी एक सीट से चुनाव जीतें। वे अभी सांसद हैं और उन्होंने लोक सभा से इस्तीफा भी नहीं दिया है। ऐसे में उनके भविष्य को लेकर पार्टी के भीतर अटकलें शुरु हो गई हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि क्या रावत बतौर मुख्यमंत्री अपने भविष्य को लेकर आशंकित है, इसीलिए उन्होंने अभी तक लोक सभा से इस्तीफा नहीं दिया है। यह भी पूछा जा रहा है कि जब उनके पास मौका था तब उन्होंने सल्ट विधानसभा सीट से उपचुनाव क्यों नहीं लड़ा? 

लेकिन कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार चुनाव आयोग पर यह पाबंदी नहीं है कि वह विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम होने पर उपचुनाव न कराए। ऐसा केवल इसलिए है ताकि प्रशासनिक तौर पर असुविधा न हो। चुनाव आयोग में लंबे समय तक कानूनी सलाहकार रहे एस के मेंदीरत्ता ने एनडीटीवी को बताया कि ऐसा कोई नियम नहीं है और यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है। ऐसा पहले भी कई बार हुआ है जब विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम होने के बावजूद उपचुनाव कराया गया। ऐसे में यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है। अगर आयोग को लगता है कि राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है तो वह उपचुनाव करवा सकता है।  

पिछले साल महाराष्ट्र में ऐसे ही संकट की आशंका थी। दरअसल, उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और उन्हें 28 मई 2020 तक विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य बनना था। राज्य में विधान परिषद की 9 सीटें खाली हुईं लेकिन तब चुनाव आयोग ने कोरोना प्रोटोकॉल और लॉकडाउन का हवाला देते हुए चुनाव टाल दिए। राज्य कैबिनेट ने राज्यपाल को दो मनोनीत सदस्यों के कोटे में से एक पर उद्धव ठाकरे के मनोनयन का प्रस्ताव दिया। लेकिन राज्यपाल ने इस पर फैसला नहीं किया। राज्य में संवैधानिक संकट के आसार बनते देख ठाकरे ने पीएम मोदी को फोन कर दखल देने की अपील की। इसके बाद राज्यपाल ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर विधान परिषद चुनाव कराने का अनुरोध किया और चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम का ऐलान किया। जिसमें ठाकरे समेत सभी 9 उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए।  

हालांकि इस साल पश्चिम बंगाल और चार अन्य राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप के दौरान चुनाव कराने को लेकर चुनाव आयोग जबर्दस्त आलोचना झेल चुका है। उसके बाद उसने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधान परिषद की 9 सीटों पर चुनाव टाल दिया था।  

जानकार गिरधर गमांग का उदाहरण भी देते हैं। गमांग 1998 में लोक सभा सांसद चुने गए थे और 1999 में ओडीशा के मुख्यमंत्री बनाए गए। राज्य में विधानसभा चुनाव 2000 में होने थे लेकिन विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम होने के बावजूद 1999 में विधानसभा का उपचुनाव हुआ और गमांग जीत कर विधायक बने।  

जो समस्या तीरथ सिंह रावत आज झेल रहे हैं वही दिक्कत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी आ सकती है। हालांकि वहां विधानसभा के कार्यकाल का मुद्दा नहीं है क्योंकि विधानसभा पिछले महीने ही गठित हुई है। लेकिन ममता बनर्जी इस समय विधायक नहीं हैं और उन्हें नवंबर तक विधायक बनना जरूरी है। उनके लिए उनके विश्वस्त नेता सोहनदेव भट्टाचार्य उनकी पुरानी सीट भवानीपुर खाली कर चुके हैं। भवानीपुर से जीतने के बाद भट्टाचार्य ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है ताकि ममता वहां से चुनाव लड़ कर विधायक बन सकें। साथ ही, समसेरगंज और जांगीपुर विधानसभा सीटें भी खाली हैं। लेकिन अगर चुनाव आयोग कोरोना के कारण उपचुनाव कराने में देरी करता है तो पश्चिम बंगाल में भी ऐसा ही संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है।  

ममता बनर्जी ने आज ही प्रधानमंत्री से अपील की है कि वे राज्य में जल्दी उपचुनाव कराने का निर्देश दें। ममता ने कहा कि कोरोना के मामले कम हो गए हैंं और एक हफ्ते में उपचुनाव हो सकते हैं। जब पॉजिटीविटी 30 प्रतिशत से अधिक थी तब विधानसभा चुनाव करा लिए गए थे तो अब जबकि तीन प्रतिशत से कम है, देरी क्यों हो रही है?

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