भारतीय उद्योग जगत ने सरकार से परमाणु उत्तरदायित्व कानूनों को और स्पष्ट बनाए जाने की मांग की, क्योंकि उनका कहना है कि ये कानून देश में परमाणु से जुड़े कारोबार के भविष्य को बाधित करने वाले हैं।
गौरतलब है कि भारत ने सोमवार को ही श्रीलंका के साथ असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (फिक्की) की अध्यक्ष ज्योत्सना सूरी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा, "विदेश मंत्रालय द्वारा मौजूदा परमाणु उत्तरदायित्व कानूनों के कारण देश में परमाणु कारोबार के भविष्य को बाधित करने वाले कुछ मुद्दों पर जारी स्पष्टीकरण का उद्योग जगत स्वागत करता है।
लेकिन इसके बावजूद उद्योग जगत अभी भी अनुत्तरित रह गए कुछ और सवालों के जवाब चाहता है, जिन पर उद्योग जगत पूरी तरह आश्वस्त होना चाहता है।"
उन्होंने आगे कहा, "सरकारी विद्युत उत्पादक कंपनियों के साथ ठेके पर जुड़ीं घरेलू उत्पादन कंपनियों के संदर्भ में आपूर्तिकर्ता की परिभाषा में उनके डिजाइन और विशिष्टता के आधार पर अधिक स्पष्टता की जरूरत है, खासकर घरेलू परमाणु कार्यक्रम के संबंध में।"
पिछले सप्ताह एक 'सामान्य प्रश्नोत्तरी' जारी कर सरकार ने घरेलू के साथ-साथ विदेशी परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को आश्वस्त करने की कोशिश की, क्योंकि विदेशी आपूर्तिकर्ता भारत के परमाणु उत्तरदायित्व कानून को लेकर सशंकित थे।
विदेश मंत्रालय द्वारा जारी इस तरह की एक प्रश्नोत्तरी के अनुसार, "कानून इसकी इजाजत देता है, लेकिन किसी संचालक के लिए परमाणु रिएक्टर या उसके किसी पुर्जे के लिए आपूर्तिकर्ता पर उत्तरदायित्व सौंपने को जरूरी नहीं बनाया गया है।"
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा गया है, "किसी आपूर्तिकर्ता पर सिर्फ क्षतिपूर्ति का दावा किया जा सकता है, अगर इसका उल्लेख संधिपत्र में किया गया हो।"
फिक्की ने हालांकि अपने वक्तव्य में कहा है, "नागरिक दायित्व के लिए परमाणु क्षति अधिनियम (सीएलएनडीए)-2010 के सेक्शन-17 और सेक्शन-46 की व्याख्या अभी भी अस्पष्ट है।"
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