विदेश मंत्री एस. जयशंकर (S Jaishankar) ने सोमवार को कहा कि दुनिया ने अगर भारत को कुछ निश्चित सांचों में “जबरन ढालने” की कोशिश की तो उसके लिए यह समझना मुश्किल हो जाएगा कि देश में क्या हो रहा है. जयशंकर ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि देश में समाज आज “गहन रूप से लोकतांत्रिक” है और इसका अधिकांश नेतृत्व व विचार प्रक्रियाएं उन लोगों और ताकतों द्वारा संचालित हो रही हैं जो भारतीय हैं, जमीनी हालात से वाकिफ हैं और जो भारत से जुड़े हुए हैं.
उन्होंने कहा, “यदि हमारे पास ऐसी स्थिति हो जहां दुनिया के अन्य हिस्से भारत को अपने सांचे में जबरदस्ती ढालने की कोशिश करें, तो उनके लिए वास्तव में यह समझना मुश्किल हो जाएगा कि हमारे देश में क्या हो रहा है.”
विदेश मंत्री ने यह भी बताया कि “भारत विमर्श” के निर्माण का क्या मतलब है.
उन्होंने कहा, “लोग कभी-कभी इसे राजनीति के रूप में देखते हैं, कभी-कभी वे शब्द-खेल को देखते हैं और सोचते हैं कि यह किसी प्रकार का भाषायी संदेश है... मैं शब्द की उत्पत्ति या अवधारणा के इतिहास में नहीं जा रहा हूं.”
जयशंकर ने कहा, “आज विभिन्न क्षेत्रों में इसके कई प्रतीक हैं.”
अर्थशास्त्र के संदर्भ में, जयशंकर ने कहा कि विमर्श ‘आत्मनिर्भर भारत' पर प्रकाश डालता है और इसमें “एक निश्चित लचीलेपन, एक निश्चित आत्मनिर्भरता, एक योगदान और एक प्रतिभा का अर्थ है जो खुद को अभिव्यक्त कर रही है”.
उन्होंने कहा, “विकास की दृष्टि से आज, जब हम भारत के बारे में बात करते हैं, तो इसका तात्पर्य एक समावेशी, न्यायसंगत और निष्पक्ष समाज बनाने की प्रतिबद्धता से भी है, जहां कोई भी पीछे न छूटे, और वास्तव में, कई मायनों में, यही विकास की सच्ची परीक्षा है.”
राजनीतिक रूप से, उन्होंने कहा कि ‘भारत विमर्श' स्वतंत्रता का एक बयान है और “यह एक घोषणा है कि जैसा कि भारत दुनिया से जुड़े तो जरूरी नहीं कि इसे दूसरों द्वारा निर्धारित शर्तों या दूसरों द्वारा निर्धारित ढांचे में किया जाए और हमारा उस जुड़ाव का उद्देश्य कई मायनों में हमारे अपने व्यक्तित्व और हमारे अपने जन्मजात गुणों को सामने आने देना है.”
उन्होंने कहा कि भारत एक समाज के “व्यक्तित्व” की अभिव्यक्ति को भी दर्शाता है.
जयशंकर ने कहा, “और जब दुनिया की बात आती है, तो हम जिस भारत के बारे में विमर्श स्थापित करना चाहते हैं वह एक ऐसा भारत है जिसे विश्व मित्र के रूप में माना जाएगा, एक मित्र के रूप में जिसने महत्वपूर्ण क्षणों में वास्तव में देशों और समाजों के लिए कदम बढ़ाया है जैसा आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नहीं किया जाता.”
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