नई दिल्ली:
भारतीय परमाणु प्रतिष्ठान ने अमेरिकी पत्रिका 'फॉरेन पॉलिसी' की उस खबर का खंडन किया है, जिसमें कहा गया है कि भारत एक गुप्त परमाणु शहर बना रहा है। परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के सूत्रों के मुताबिक, यह महज इत्तेफाक भर है कि कर्नाटक सरकार द्वारा आवंटित की गई भूमि पर एक-दूसरे के पास-पास कई शीर्ष संस्थान स्थापित किए जा रहे हैं।
फॉरेन पॉलिसी में 16 दिसंबर को प्रकाशित विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक के दक्षिणी हिस्से में 2012 के शुरुआत में इस शहर पर काम शुरू हुआ।
14 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि चालाकेरे में स्थित आदिवासी चरागाह भूमि को एक परियोजना के लिए बाड़ से घेर दिया गया है और विशेषज्ञों के अनुसार यह भूमि देश का सबसे बड़ा सैन्य संचालित परमाणु अनुसंधान का केंद्र होगा, जहां परमाणु अनुसंधान प्रयोगशालाएं, परमाणु हथियारों एवं परमाणु युद्धक विमानों के परीक्षण की सुविधाएं मौजूद होंगी और इसे 2017 तक पूरी तरह विकसित किया जाएगा।
फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इस परियोजना का प्रारंभिक उद्देश्य सरकार की परमाणु शोध को विस्तार देना, भारत के परमाणु रिएक्टरों के लिए ईंधन का उत्पादन करना और भारत की नई परमाणु पनडुब्बियों को और शक्तिशाली बनाने में मदद करना होगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सरकार ने अपने परमाणु हथियारों का कभी सार्वजनिक खुलासा नहीं किया, जबकि उसने 1974 में ही इसे विकसित कर लिया था। डीएई सूत्रों ने हालांकि फॉरेन पॉलिसी की इस रिपोर्ट को खारिज किया और कहा है, 'इसमें गोपनीय जैसा कुछ भी नहीं है।'
सूत्रों ने बताया, 'देश का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित परमाणु संस्थान भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) यहां अपना एक परिसर स्थापित कर रहा है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) भी यहां अपने केंद्र खोल रहे हैं।'
सूत्रों ने बताया, 'यह महज संयोग है कि ये सारे संस्थान आस-पास ही स्थापित किए जा रहे हैं।'
फॉरेन पॉलिसी में 16 दिसंबर को प्रकाशित विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक के दक्षिणी हिस्से में 2012 के शुरुआत में इस शहर पर काम शुरू हुआ।
14 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि चालाकेरे में स्थित आदिवासी चरागाह भूमि को एक परियोजना के लिए बाड़ से घेर दिया गया है और विशेषज्ञों के अनुसार यह भूमि देश का सबसे बड़ा सैन्य संचालित परमाणु अनुसंधान का केंद्र होगा, जहां परमाणु अनुसंधान प्रयोगशालाएं, परमाणु हथियारों एवं परमाणु युद्धक विमानों के परीक्षण की सुविधाएं मौजूद होंगी और इसे 2017 तक पूरी तरह विकसित किया जाएगा।
फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इस परियोजना का प्रारंभिक उद्देश्य सरकार की परमाणु शोध को विस्तार देना, भारत के परमाणु रिएक्टरों के लिए ईंधन का उत्पादन करना और भारत की नई परमाणु पनडुब्बियों को और शक्तिशाली बनाने में मदद करना होगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सरकार ने अपने परमाणु हथियारों का कभी सार्वजनिक खुलासा नहीं किया, जबकि उसने 1974 में ही इसे विकसित कर लिया था। डीएई सूत्रों ने हालांकि फॉरेन पॉलिसी की इस रिपोर्ट को खारिज किया और कहा है, 'इसमें गोपनीय जैसा कुछ भी नहीं है।'
सूत्रों ने बताया, 'देश का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित परमाणु संस्थान भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) यहां अपना एक परिसर स्थापित कर रहा है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) भी यहां अपने केंद्र खोल रहे हैं।'
सूत्रों ने बताया, 'यह महज संयोग है कि ये सारे संस्थान आस-पास ही स्थापित किए जा रहे हैं।'