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This Article is From Dec 08, 2023

जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर भारत ने ब्रीडर परमाणु रिएक्टरों में महारत हासिल की

कार्बन मुक्त बिजली के एक स्रोत परमाणु ऊर्जा को अधिक स्वीकार्यता मिल रही

कलपक्कम (तमिलनाडु):

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए समाधान खोजने की कोशिशें की जा रही हैं. दुबई में चल रहे पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी-28) में इस बात पर चर्चा हो रही है कि जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कैसे नियंत्रित किया जाए. जलवायु परिवर्तन के लिए आज परमाणु ऊर्जा का उपयोग, जो कार्बन मुक्त बिजली का स्रोत है, को अधिक स्वीकार्यता मिल रही है.

भारत में पहले से ही एक अत्यधिक एडवांस परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम है. भारत की कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए 2032 तक कार्बन मुक्त परमाणु ऊर्जा का उत्पादन मौजूदा करीब 7000 मेगावाट से तीन गुना बढ़ाकर 22,000 मेगावाट करने की योजना है. भारत के विज्ञान मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कल संसद को बताया कि 'नेट ज़ीरो लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत के क्लीन एनर्जी ट्रांजीशन में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु ऊर्जा को सबसे आशाजनक स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों में से एक माना जाता है.'

जहां पूरी दुनिया केवल यूरेनियम को परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, वहीं भारत प्लूटोनियम और थोरियम से लगभग असीमित मात्रा में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है. भारत के पास अच्छी तरह से स्थापित फास्ट ब्रीडर परमाणु रिएक्टर कार्यक्रम है जो देश को आवश्यक 'ऊर्जा स्वतंत्रता' हासिल करने में मदद कर सकता है.

विज्ञान मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह का दावा है कि "वर्ष 2047 तक बिजली का लगभग 9 प्रतिशत हिस्सा भारत के परमाणु स्रोतों से आने की संभावना है. परमाणु ऊर्जा विभाग का लक्ष्य वर्ष 2030 तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन की 20 गीगावॉट क्षमता हासिल करना है. यह भारत को अमेरिका और फ्रांस के बाद दुनिया में परमाणु ऊर्जा के तीसरे सबसे बड़े उत्पादक के रूप में स्थापित करने वाला एक बड़ा मील का पत्थर होगा."

इस सुविधा का नेतृत्व एक छोटे से शहर कलपक्कम से किया जा रहा है, जो विश्व प्रसिद्ध यूनेस्को विरासत स्थल महाबलीपुरम से ज्यादा दूर नहीं है. यहां सैकड़ों भारतीय इंजीनियर फास्ट ब्रीडर रिएक्टर तकनीक में महारत हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. एनडीटीवी के विज्ञान संपादक पल्लव बागला को उन प्रयोगशालाओं का दौरा करने की विशेष अनुमति दी गई जहां भारतीय वैज्ञानिक ईंधन के रूप में प्लूटोनियम और थोरियम के उपयोग की जटिलताओं को समझने के लिए काम कर रहे हैं.

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फास्ट ब्रीडर रिएक्टर कार्यक्रम के केंद्र में प्रवेश करने से पहले किसी को भी गहन सुरक्षा की आधा दर्जन से अधिक परतों से गुजरना पड़ता है. यह समझ में आता है क्योंकि आज केवल दो देश रूस और भारत ही कार्यात्मक फास्ट ब्रीडर रिएक्टर संचालित करते हैं क्योंकि तकनीक जटिल है और इसमें महारत हासिल करना बहुत कठिन है.

एक फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बहुत अनोखा होता है. ये ब्रीडर रिएक्टर खपत से अधिक ईंधन का उत्पादन करते हैं और यही कारण है कि कुछ लोग इन्हें 'अक्षय पात्र' या ऊर्जा उत्पादन का अंतहीन स्रोत बताते हैं. इन रिएक्टरों में 'फास्ट' शब्द उच्च ऊर्जा वाले तेज़ न्यूट्रॉन के उपयोग से आया है.

भारत में एक कार्यात्मक फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (FBTR) है जो पिछले 38 वर्षों से कार्य कर रहा है. यह छोटा प्रायोगिक रिएक्टर वह परीक्षण स्थल है जहां परमाणु ऊर्जा विभाग ने उन्नत परमाणु ईंधन के उपयोग को सिद्ध किया. कोई भी देश इस संवेदनशील तकनीक की जानकारी साझा करने को तैयार नहीं है. इसके परिणामस्वरूप इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर), कलपक्कम के वैज्ञानिकों ने यह शुरू से ही सीखा है.

परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के अनुसार, फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) 40MWt/13.6 MWe, लूप प्रकार का है, यह अपनी तरह का पहला सोडियम कूल्ड फास्ट रिएक्टर है जो ईंधन के रूप में प्लूटोनियम कार्बाइड और यूरेनियम कार्बाइड के मिश्रण का उपयोग करता है.

एफबीटीआर ने 18 अक्टूबर, 1985 को पहली निर्णायक स्थिति प्राप्त की और 18 अक्टूबर, 2023 को सफल संचालन के 38 साल पूरे किए. फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (आईजीसीएआर) का फ्लैगशिप है, जो भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के दूसरे चरण में फास्ट रिएक्टर रिसर्च के लिए समर्पित है. 

डीएई का कहना है कि एफबीटीआर ने 40 मेगावाट की डिजाइन शक्ति पर संयंत्र के संचालन सहित कई मील के पत्थर पार कर लिए हैं. एक परीक्षण रिएक्टर होने के नाते, इसका मुख्य उद्देश्य मिशन मोड विकिरण अभियानों पर काम करना है. एफबीटीआर ने अपनी स्थापना के बाद से 32 विकिरण अभियान और अड़तीस वर्षों का सुरक्षित और सफल संचालन पूरा किया है और यह फास्ट ब्रीडर रिएक्टर और संबंधित क्लोज्ड फ्यूल साइकल टेक्नालाजी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. एफबीटीआर को 28 जून, 2028 तक संचालन के लिए पुनः लाइसेंस दिया गया है.

एफबीटीआर के सफल संचालन से हासिल अनुभव और विशेषज्ञता के साथ केंद्र ने 500 मेगावाट के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (पीएफबीआर) की डिजाइन पर काम शुरू किया था जो अब एकीकृत कमीशनिंग के उन्नत चरण में है. फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर), कलपक्कम के स्टेशन निदेशक जी शनमुगम कहते हैं, "अगर सब कुछ ठीक रहा तो भारत का सबसे उन्नत परमाणु रिएक्टर पीएफबीआर 2024 में परिचालन शुरू कर सकता है."

अगले बड़े प्रयोग के रूप में आईजीसीएआर के वैज्ञानिक एफबीटीआर से स्वच्छ और हरित हाइड्रोजन उत्पादन की व्यवहार्यता तलाश रहे हैं क्योंकि संयंत्र पहले से ही बहुत अधिक तापमान पर भाप का उत्पादन करता है.

परमाणु ऊर्जा विभाग अब अपने अत्याधुनिक स्वदेशी डिजाइन और स्थानीय स्तर पर विकसित बड़े फास्ट ब्रीडर रिएक्टर को चालू करने के लिए तैयार हो रहा है. केवल परियों की कहानियों में ही चूल्हे के बारे में सुना जाता है, जो कि जलने के साथ-साथ लगातार और स्वचालित रूप से अधिक ईंधन बनाता है, जिससे ऊर्जा की लगभग निर्बाध आपूर्ति होती है. हां, ये नए रिएक्टर जादुई लगते हैं लेकिन सभी परियों या जिन्नों की तरह इन्हें भी वश में करना और नियंत्रण हटाना बहुत कठिन है. लेकिन ऊर्जा का भूखा भारत इस जिन्न पर काबू पाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है.

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