- पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच सीमा पर एक साल में तनाव काफी घटा है और हालात बेहतर हुए हैं
- प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की उच्च स्तरीय बैठकों से सीमा विवादों के समाधान को गति मिली है
- ले.जनरल (रिटायर्ड) संजय कुलकर्णी ने कहा कि चीन के इतिहास को देखते हुए सतर्क रहने की जरूरत है
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच अब सरहद पर हालात तेजी से बेहतर हो रहे हैं. खासकर पिछले एक साल में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव काफी कम हुआ है. पांच साल पहले गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष के बाद सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी के बयान को सीमा पर जमी बर्फ पिघलाने को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव समझा जा सकता है. सेना प्रमुख ने इस सकारात्मक बदलाव का श्रेय दोनों देशों के बीच विभिन्न स्तरों पर बढ़ी बातचीत को दिया है.
उच्च स्तर पर रिश्तों में गर्माहट आई
सेना प्रमुख मानते हैं कि भारत और चीन सीमा पर हालात में आया बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात का नतीजा है. दोनों नेताओं के बीच पहले अक्टूबर 2024 में कज़ान में और फिर 2025 में तियानजिन में एसीओ सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई थी. दोनों पक्ष की ओर से कहा गया कि आपसी बातचीत को प्राथमिकता दी जाए और विवाद का जल्द समाधान खोजा जाए.

अगस्त 2025 में तियानजिंग में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग
मंत्रियों की बैठकों ने बनाया माहौल
इतना ही नहीं, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच भी मुलाकात हुई. फिर वांग यी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मीटिंग हुई. चीन के क़िंगदाओ में एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान राजनाथ सिंह और चीनी रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जुन के बीच वार्ता हुई. इन वार्ताओं के बाद दोनों पक्ष इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सीमा पर जितनी अधिक बातचीत होगी, उतना ही बेहतर है. साफ है कि राजनीतिक स्तर पर निर्देश स्पष्ट होने पर सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर काम आसान हो जाता है.
बटालियन स्तर पर सुलझ रहे मामले
जनरल द्विवेदी कहते हैं कि पहले भारत-चीन की सेनाओं के बीच बातचीत की प्रक्रिया काफी औपचारिक और धीमी रहती थी. जब भी सीमा पर कोई विवाद होता तो समाधान के लिए कोर कमांडर स्तर पर मीटिंग होती थी, लेकिन अब हालात बदले हैं. अब बटालियन और कंपनी कमांडर स्तर पर ही मुद्दे सुलझा लिए जाते हैं. इससे छोटे विवाद बड़ा रूप नहीं ले पाते. सीमा पर मनमुटाव नहीं बढ़ पाता. भारत-चीन के बीच सीमा विवादों के नजरिए से देखें तो यह बदलाव बहुत बड़ी बात है.
एक साल में 1100 से अधिक वार्ताएं
ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि एलएसी पर अधिकतर तनाव तात्कालिक घटनाओं या ग़लतफ़हमी से उपजता है. ऐसे मामलों को अगर जमीनी स्तर पर ही समझदारी से सुलझा लिया जाता तो हालात इतने ना बिगड़ते. यह कहना गलत नहीं होगा कि जमीनी स्तर पर लोकल कमांडर तत्काल समस्या का व्यावहारिक समाधान ढूंढ लेते हैं. सेना प्रमुख ने बताया कि पिछले एक साल में दोनों सेनाओं के बीच 1100 से अधिक जमीनी स्तर की बातचीत हुई हैं. औसत देखें तो दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक दिन में तीन बार तक बात हुई.

भारत की आपत्ति पर अब तुरंत एक्शन
सीमा पर आपसी विश्वास के माहौल का असर ग्राउंड पर भी दिखने लगा है. अब चीन की सेना सीमा पर किसी भी तरह के निर्माण या गतिविधि की जानकारी भारतीय पक्ष को पहले से देने लगी है. ऐसा भी होता है कि अगर भारत किसी निर्माण पर आपत्ति जताता है, तो चीनी सेना तुरंत निर्माण हटाने या रोकने पर तैयार हो जाती है. पहले इसका ठीक उलटा होता था. चीनी सेना अक्सर ऐसे मामलों में जानकारी शेयर करने से बचती थी और जब भारतीय सेना विरोध करती तो माहौल तनावपूर्ण हो जाता था.
संवेदनशील इलाकों से हटी सेनाएं
जनरल द्विवेदी ने बताया कि सीमा के अधिकतर संवेदनशील बिंदुओं पर डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. दोनों ओर से सीमा पर तैनात सैनिकों को साफ निर्देश है कि कहीं भी तनातनी होने पर संवाद को प्राथमिकता दी जाए. इसके बाद बातचीत में अब लचीलापन बढ़ा है. हालांकि सेना प्रमुख यह भी दोहराते हैं कि सीमा पर बड़े रणनीतिक निर्णय अभी भी उच्च स्तर पर ही लिए जायेंगे. आगे की दिशा विशेषज्ञ और वर्किंग ग्रुप तय करेंगे. सीमा पर डिसएंगेजमेंट को लेकर भारत-चीन ने दो ग्रुप बनाये हैं. एक विशेषज्ञ समूह है तो दूसरा वर्किंग मैकेनिज़्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन है. इन दोनों ग्रुप के निर्देश और मार्गदर्शन के अनुसार सेना आगे बढ़ती है.
एक्सपर्ट बोले, चीन से सावधानी जरूरी
भारत-चीन सीमा पर तैनात रहे लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) संजय कुलकर्णी ने एनडीटीवी से कहा कि चीन के साथ संबध अच्छे होने चाहिए, इसमें कोई दोराय नहीं है. लेकिन चीन के साथ कोई भी संधि हो तो वह आपसी सम्मान वाली होनी चाहिए. चीन के पिछले इतिहास को देखें तो पता चलता है कि वह बोलता कुछ है और करता कुछ और है. ऐसे में सतर्क रहने की जरूरत है. हमें अपनी तकनीक, मिलिट्री, आर्थिक विकास को और भी मजबूत करना होगा. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन उसी को इज्जत देता है जो उसकी बराबरी या टक्कर का हो.
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