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Prayagraj Lok Sabha seat: 'प्रधानमंत्रियों के शहर' में बीजेपी को हैट्रिक लगाने से रोक सकेगा INDIA गठबंधन?

लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले NDTV की विशेष सीरीज Know Your Constituency में आज बात इसी प्रयागराज सीट (Prayagraj Lok Sabha seat) की...जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था. इस एक अकेले शहर ने देश को 7 प्रधानमंत्री दिए हैं. इस बार के चुनाव में बीजेपी यहां जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश में है तो वहीं INDIA गठबंधन उसके सामने मजबूत चुनौती पेश कर रहा है.

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नई दिल्‍ली:

Lok Sabha Elections 2024: गंगा, यमुना और सरस्वती का जहां संगम होता है उसे हम प्रयागराज के नाम से जानते हैं.हिंदू मान्यताओं के मुताबिक सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने संसार की रचना के बाद यहीं पहला यज्ञ किया था...यहीं के त्रिवेणी संगम पर हर बारह साल में कुंभ के दौरान दुनिया की सबसे बड़ी भीड़ जुटती है.ये तो प्रयागराज की धार्मिक पहचान है लेकिन सियासी पहचान ये है कि ये शहर राजनीति की नर्सरी रही है. प्रयागराज के लोगों से पूछिए तो वे अपने शहर को प्रधानमंत्रियों का शहर बताएंगे और ये बातें यूं ही नहीं कही जाती.इस एक अकेले शहर ने देश को 7 प्रधानमंत्री दिए हैं. जिनके नाम हैं- जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर और गुलजारी लाल नंदा (Jawaharlal Nehru, Lal Bahadur Shastri, Indira Gandhi, Rajiv Gandhi, V.P. Singh, Chandrashekhar and Gulzari Lal Nanda).लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले NDTV की विशेष सीरीज Know Your Constituency में आज बात इसी प्रयागराज सीट (Prayagraj Lok Sabha seat) की...जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था. 

हमने आपको जो नाम ऊपर बताए,उनके अलावा भी कई ऐसे नाम हैं जिन्हें सियासी दुनिया में बेहद सम्मान से याद किया जाता है, मसलन- जनेश्वर मिश्र, मुरली मनोहर जोशी, हेमवंती नंदन बहुगुणा और कुंवर रेवतीरमण सिंह आदि...जाहिर है जिस शहर ने इतने दिग्गज दिए हैं उसका सियासी इतिहास कम दिलचस्प नहीं होगा. जिस पर हम विस्तार से बात करेंगे लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि खुद प्रयागराज का इतिहास क्या है? 

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हिंदू मान्यताओं के मुताबिक जब भगवान ब्रह्मा ने यहां पहली बार यज्ञ किया था इसी प्रथम यज्ञ के प्र और यज्ञ को मिलाकर प्रयाग नाम बना. इस शहर का जिक्र पुराणों और उपनिषदों में भी मिलता है. 643 ईस्वी में जब चीनी यात्री हुआन त्सांग यहां आया तो उसने इसे बेहद पवित्र नगरी के तौर पर अपनी किताब में जिक्र किया.

इसके बाद साल 1775 में महान मुगल बादशाह अकबर ने इसका नाम इलाहाबास रखा. जिसका मतलब था- अल्लाह का शहर .इसके बाद शहर के इतिहास का अहम साल रहा- 1801, जब अवध के नवाब ने इसे ब्रिटिश शासन को सौंप दिया. 1858 में इस शहर का नाम इलाहाबाद पड़ा और इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बनाया गया.

देश में कई परिवर्तनकारी फैसले देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थापना 1868 में हुई थी. पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1887 में हुई थी. आजादी की लड़ाई के दौरान यहीं का आनंद भवन आंदोलन का केन्द्र बना. चंद्रशेखर आजाद की मौत यहीं के अल्फ्रेड पार्क में हुई थी.

प्रयागराज के सियासी इतिहास की चर्चा करने से पहले जान लेते हैं इस शहर की डेमोग्राफी क्या है.इस लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभाएं आती हैं. इसमें मेजा, करछना, प्रयागराज दक्षिण, बारा और कोरांव शामिल है. साल 2022 विधानसभा चुनावव में 4 सीटों पर एनडीए और एक सीट पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली है. मेजा विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के संदीप सिंह पटेल और बारा सीट से अपना दल की वाचस्पति ने जीत हासिल की है. इसके अलावा 3 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है.  इस संसदीय सीट पर कुल मतदाता लगभग 17 लाख हैं. इसमें करीब 9 लाख पुरुष और 8 लाख महिला मतदाता हैं. 

प्रयागराज संसदीय सीट पर अब तक 21 बार संसदीय चुनाव हुए हैं. जिसमें से 9 बार कांग्रेस, 5 बार बीजेपी, 2 बार समाजवादी पार्टी, 2 बार जनता पार्टी और 2 बार जनता दल ने जीत दर्ज की है. सबसे अधिक तीन बार बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी यहां से सांसद रहे. वे 1996,1998 और 1999 में यहां से जीत कर संसद पहुंचे. यहां से दो बार लाल बहादुर शास्त्री और दो बार कुंवर रेवतीरमण सिंह भी विजयी रहे हैं.इस सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ तब कांग्रेस के श्रीप्रकाश सांसद चुने गए थे. जबकि साल 1957 और साल 1962 में लाल बहादुर शास्त्री यहीं से जीत कर संसद पहुंचे. साल 1967 में उनके बेटे हरिकृष्ण शास्त्री को यहां से जीत मिली. साल 1971 में हेमवती नंदन बहुगुणा यहीं से चुनाव जीतकर सदन पहुंचे. साल 1977 में जनता पार्टी के जनेश्वर मिश्रा सांसद चुने गए. साल 1980 में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह सांसद चुने गए.

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इसके बाद साल 1984 में कांग्रेस के टिकट पर महानायक अमिताभ बच्चन यहां से सांसद बने. साल 1988 में हुए उपचुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह निर्दलीय सांसद चुने गए. इसके बाद साल 1989 में जनता दल के जनेश्वर मिश्रा और साल 1991 में सरोज दुबे ने यहां से जीत हासिल की. इस सीट पर साल 1996 के चुनाव में बीजेपी को पहली बार जीत मिली. तब मुरली मनोहर जोशी यहां से सांसद चुने गए. साल 1998 और 1999 चुनाव में भी मुरली मनोहर जोशी को जीत मिली. लेकिन साल 2004 आम चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी का खाता खुला. रेवती रमण सिंह ने जीत हासिल की. साल 2009 में भी रेवती रमण सिंह ने जीत का परचम लहराया.साल 2014 आम चुनाव में एक बार फिर बीजेपी को जीत मिली. इस बार बीजेपी ने श्यामा चरण गुप्ता को मैदान में उतारा था.

बीजेपी की जीत का सिलसिला साल 2019 आम चुनाव में भी जारी रहा. पार्टी ने तब रीता बहुगुणा जोशी को मैदान में उतारा था और उन्होंने सपा के राजेन्द्र सिंह पटेल पर बड़ी जीत दर्ज की. देखा जाए तो इलाहाबाद संसदीय सीट का अपना ही मिजाज है...ये वो सीट है जिसने दिग्गज राजनेता हेमवंती नंदन बहुगुणा को भी पहली बार चुनाव लड़ रहे सदी के महानायक अभिताभ बच्चन के हाथों हरवा दिया, हालांकि बिग बी ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. वैसे इस बार भी चुनाव दिलचस्प होने वाला है...क्योंकि इस सीट पर बीजेपी की हैट्रिक जीत को रोकने के लिए पहली बार विपक्ष यानी INDIA गठबंधन अपना संयुक्त उम्मीदवार उतारने जा रहा है. दूसरी तरफ खुद मौजूदा सांसद रीता बहुगुणा जोशी को भी टिकट मिलना तय नहीं है. परिणाम कुछ भी आए लेकिन राजनीति के इस नर्सरी से आने वाले परिणाम पर पूरे देश की निगाह होगी. 

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