
न्यायपालिका पर हमलों के बीच सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज ने जरूरी टिप्पणी की है. वरिष्ठता में तीसरे नंबर के जज, जस्टिस सूर्य कांत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हमें संस्थान के बारे में चिंता नहीं है, संस्थान पर हर रोज हमले होते है. जस्टिस सूर्यकांत ने यह टिप्पणी कर्नाटक में एक एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के खिलाफ अदालत की अवमानना के मामले की सुनवाई करते हुए की.
वकील की अपील पर आई जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी
दरअसल मामले की पैरवी कर रहे वकील ने पीठ से अपील की कि जब सवाल संस्थान (सुप्रीम कोर्ट ) पर जनता के भरोसे का है तो अदालत को अवमानना का संज्ञान लेना चाहिए. इसका जवाब देते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि हमें संस्थान के बारे में चिंता नहीं है, संस्थान पर हर रोज हमले होते हैं. इससे पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने अखबार के खिलाफ एक जज के बेटे और पत्नी द्वारा दायर की गई न्यायालय की अवमानना की दो याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
ये याचिकाएं 2009 और 2010 में दायर की गई थीं, जब एक नए समाचार पत्र ने बैंगलोर विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा नियमों और प्रक्रियाओं को तोड़ने की खबर प्रकाशित की थी. उच्च न्यायालय ने दोनों याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि अखबार की 9 मई, 2009 को पहले पन्ने पर बेंगलुरु विश्वविद्यालय ने वीआईपी बेटे को विशेष लाभ पहुंचाया. शीर्षक से प्रकाशित समाचार रिपोर्ट न्यायालय की अवमानना नहीं है.
चौथे स्तंभ की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम नहीं किया जा सकता
इसके साथ ही कहा कि चौथे स्तंभ की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम नहीं किया जा सकता. यह आरोप कि समाचार पत्र की रिपोर्टों के कारण छात्र को बदनाम किया गया था, अवमानना के रूप में नहीं माना जा सकता है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि अवमानना की शक्ति का प्रयोग सार्वजनिक हित की रक्षा और एक संस्था के रूप में न्यायालय की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए. इसने सुप्रीम कोर्ट एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए यह भी कहा कि अवमानना के अधिकार क्षेत्र का उपयोग संयम से किया जाना चाहिए.
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