मोदी सरकार ने कहा, अगर NJAC हटेगा तो लाएंगे नया कानून

मोदी सरकार ने कहा, अगर NJAC हटेगा तो लाएंगे नया कानून

नई दिल्ली:

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति को लिए बने कमिशन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अहम दौर में पहुंच गई है। केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट नेशनल ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट कमिशन (NJAC) को रद्द करता है तो सरकार इसके लिए फिर नया कानून बनाकर पास करेगी।

सरकार ने कहा कि अगर NJAC खत्म भी होता है तो भी कॉलेजियम सिस्टम फिर काम नहीं कर सकता। सॉलीसिटर जनरल रंजीत कुमार ने 5 जजों की संविधान पीठ के सामने सरकार की ओर से दलीलें देते हुए कहा कि पीठ को इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ये कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।  
कोर्ट इस मामले की सुनवाई उस वक्त कर सकता है जब कमिशन अपना काम करना शुरू कर दे। लेकिन इस दौरान संविधान पीठ के जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि अगर इस मामले में कोर्ट इस केस की सुनवाई अनिश्चितकाल के लिए टाल भी दे तो ये मामला अधर में लटका रहेगा क्योंकि चीफ जस्टिस पहले ही कमिशन में हिस्सा लेने से इनकार कर चुके हैं।

सुनवाई के दौरान पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जेएस खेहर ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर सरकार इस मामले में न्यायपालिका से सारे अधिकार लेना चाहती है तो हम इसके लिए भी तैयार हैं। कोर्ट एक्ट से उस हिस्से को निकाल देगा जिसमें नियुक्ति के लिए न्यायपालिका से परामर्श की बात कही गई है।
इससे पहले अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी भी सरकार की ओर से कह चुके हैं कि 22 साल पुराना कॉलेजियम सिस्टम अब मर चुका है, दफन हो चुका है और जा चुका है। केंद्र ने हाईकोर्ट के कुछ जजों की सूची सौंपी थी जिनमें सरकार के विरोध के बावजूद उन्हें हाईकोर्ट का जज बनाया गया। ये नियुक्तियां 2013 और 2014 में की गईं।

केद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें खुफिया विभाग की रिपोर्ट के बावजूद कॉलेजियम ने जजों की नियुक्ति की। हालांकि संविधान पीठ ने सवाल उठाया कि किसी व्यक्ति के बारे में संदेह की रिपोर्ट देने से ही उसकी नियुक्ति कैसे रोकी जा सकती है। ऐसे में सरकार बजाय संदेह जताने के कोई ठोस सबूत क्यों नहीं देती। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ उन याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है, जिसमें केंद्र सरकार के नेशनल ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट कमिशन (NJAC) के नोटफिकेशन को चुनौती दी गई है।

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याचिका में कहा गया है कि ये एक्ट न्यायपालिका की आजादी में खलल डालता है लिहाजा इसे खत्म किया जाना चाहिए।