नई दिल्ली : दिल्ली से सटे गुड़गांव के पास मांगर के जंगल हमेशा खतरे में रहे हैं। फिलहाल अदालत ने मांगर के जंगलों में पेड़ काटने और यहां से कोई रास्ता निकालने पर रोक लगाई हुई है, लेकिन पर्यावरण कानूनों में बदलाव के लिए सरकार की बनाई सुब्रह्मण्यम कमेटी की सिफारिशों ने एक फिक्र पैदा कर दी है।
लंबे समय से मांगर को बचाने की लड़ाई लड़ रहे चेतन अग्रवाल इन दिनों फिक्रमंद हैं, क्योंकि अगर सुब्रह्मण्यम कमेटी की सिफारिशें लागू हुईं तो मांगर कानूनी रूप से जंगल नहीं रह जाएगा। और सरकार बड़ी आसानी से इसे किसी भी रियल एस्टेट कंपनी या इंडस्ट्री को दे सकती है।
असल में सुब्रह्मण्यम कमेटी की सिफारिश कहती है कि जो ज़मीन वन विभाग की नहीं है और राजस्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में है उसे जंगल में नहीं गिना जाना चाहिए। जबकि मौजूदा नियम कहते हैं कि अगर पेड़ लगी ज़मीन शब्दकोश के हिसाब से जंगल की परिभाषा पर खरी उतरती है तो उसे जंगल माना जाएगा और उस पर पेड़ काटने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होगी।
चेतन अग्रवाल कहते हैं कि सुब्रह्मण्यम कमेटी की सिफारिशों से गुड़गांव, फरीदाबाद और दिल्ली के आसपास की हरियाली गायब हो जाएगी, क्योंकि यहां जो भी पेड़ लगे हैं उनमें से ज़्यादातर जंगल रहेंगे ही नहीं। मांगर की तर्ज पर ही हरियाणा की अरावली की पहाड़ियों पर भी संकट आ सकता है।
खुद दिल्ली में भी कई इलाके हैं जो हरे भरे हैं। ये इलाके भले ही फॉरेस्ट लैंड न हों, लेकिन यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत पेड़ नहीं काटे जा सकते। ऐसे हरे घने जंगल प्रदूषण को काबू में रखने में काफी मददगार हैं। खासतौर से तब जबकि दिल्ली और बंगलौर जैसे शहरों में हवा में ज़हर सारी हदों को पार कर रहा है।
कमेटी की सिफारिशें ये भी कहती हैं कि निजी कंपनियों की ओर से किसी भी बड़े भूभाग में किया गया वृक्षारोपण जंगल न माना जाए और सड़क के किनारे लगे पेड़ों को काटने के लिए भी मौजूदा कानूनों के हिसाब से अनुमति लेने की मजबूरी न हो।
कमेटी की ये सिफारिशें विकास की रफ्तार के लिए जंगल की ज़मीन को लेने के नियम आसान करने कि दिशा में एक कदम हैं। सरकार संसद के इस सत्र में पर्यावरण कानूनों में ऐसे बदलाव करने की तैयारी में है, जिसमें उसे अधिक विरोध का सामना न करना पड़े। लेकिन क्या सरकार जंगल की परिभाषा बदलने वाली सिफारिश पर गौर करेगी।
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर अभी भरोसा दिला रहे हैं कि इस पर जल्दबाज़ी नहीं होगी। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया से कहा, 'जंगल की परिभाषा बदलने के लिए अभी कोई फैसला नहीं किया गया है। हम जन भागेदारी बढ़ाकर हर शहरी इलाके में हरियाली बढ़ाना चाहते हैं।'